भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इंतज़ार की रात / इब्ने इंशा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इब्ने इंशा |संग्रह= }} उमड़ते आते हैं शाम के साये दम-ब-द...) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatNazm}} | |
− | + | <poem> | |
− | + | ||
उमड़ते आते हैं शाम के साये | उमड़ते आते हैं शाम के साये | ||
− | |||
दम-ब-दम बढ़ रही है तारीकी | दम-ब-दम बढ़ रही है तारीकी | ||
− | |||
एक दुनिया उदास है लेकिन | एक दुनिया उदास है लेकिन | ||
− | |||
कुछ से कुछ सोचकर दिले-वहशी | कुछ से कुछ सोचकर दिले-वहशी | ||
− | |||
मुस्कराने लगा है- जाने क्यों ? | मुस्कराने लगा है- जाने क्यों ? | ||
− | |||
वो चला कारवाँ सितारों का | वो चला कारवाँ सितारों का | ||
− | |||
झूमता नाचता सूए-मंज़िल | झूमता नाचता सूए-मंज़िल | ||
− | |||
वो उफ़क़ की जबीं दमक उट्ठी | वो उफ़क़ की जबीं दमक उट्ठी | ||
− | |||
वो फ़ज़ा मुस्कराई, लेकिन दिल | वो फ़ज़ा मुस्कराई, लेकिन दिल | ||
− | |||
डूबता जा रहा है - जाने क्यों ? | डूबता जा रहा है - जाने क्यों ? | ||
− | + | </poem> | |
− | + | ||
− | + | ||
उफ़क़=क्षितिज; जबीं=मस्तक | उफ़क़=क्षितिज; जबीं=मस्तक | ||
− | |||
− | |||
(रचनाकाल : 1945) | (रचनाकाल : 1945) |
13:34, 15 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
उमड़ते आते हैं शाम के साये
दम-ब-दम बढ़ रही है तारीकी
एक दुनिया उदास है लेकिन
कुछ से कुछ सोचकर दिले-वहशी
मुस्कराने लगा है- जाने क्यों ?
वो चला कारवाँ सितारों का
झूमता नाचता सूए-मंज़िल
वो उफ़क़ की जबीं दमक उट्ठी
वो फ़ज़ा मुस्कराई, लेकिन दिल
डूबता जा रहा है - जाने क्यों ?
उफ़क़=क्षितिज; जबीं=मस्तक (रचनाकाल : 1945)