भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कह दो तो! / ओम निश्चल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम निश्चल |संग्रह=शब्दि सक्रिय हैं }} {{KKCatNavgeet}} <Poem> ज…)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=ओम निश्चल   
 
|रचनाकार=ओम निश्चल   
|संग्रह=शब्दि सक्रिय हैं
+
|संग्रह=शब्द सक्रिय हैं
 
}}
 
}}
 
{{KKCatNavgeet}}
 
{{KKCatNavgeet}}
 
<Poem>
 
<Poem>
जूडे मे फूल टॉंक दूँ
+
जूड़े मे फूल टाँक दूँ
 
ओ प्रिया
 
ओ प्रिया
 
कह दो तो हरसिंगार का
 
कह दो तो हरसिंगार का
  
 
दूध नहाई जैसी रात  
 
दूध नहाई जैसी रात  
हुई सॉंवरी,
+
हुई साँवरी,
रह रह के भिगो रही
+
रह-रह के भिगो रही
 
पुरवाई बावरी,
 
पुरवाई बावरी,
भीग गया है तन मन
+
भीग गया है तन-मन
पॉंवों में है रुनझुन
+
पाँवों में है रुनझुन
अंग अंग में उभार दूँ
+
अंग-अंग में उभार दूँ
 
ओ प्रिया,
 
ओ प्रिया,
 
कह दो तो छंद प्यार का
 
कह दो तो छंद प्यार का
  
खुली हुई सॉंकल है
+
खुली हुई साँकल है
खुली हुई खिडकियॉं
+
खुली हुई खिडकियाँ
शोख हवाऍं देतीं
+
शोख हवाएँ देतीं
मंद मंद थपकियॉं
+
मंद-मंद थपकियाँ
 
भीतर बाहर अमंद
 
भीतर बाहर अमंद
 
बिखरी है नेह गंध
 
बिखरी है नेह गंध
साँस सॉंस में उतार दूँ
+
साँस-साँस में उतार दूँ
 
ओ प्रिया,
 
ओ प्रिया,
 
कह दो सुर सितार का
 
कह दो सुर सितार का
 
<Poem>
 
<Poem>

11:41, 21 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

जूड़े मे फूल टाँक दूँ
ओ प्रिया
कह दो तो हरसिंगार का

दूध नहाई जैसी रात
हुई साँवरी,
रह-रह के भिगो रही
पुरवाई बावरी,
भीग गया है तन-मन
पाँवों में है रुनझुन
अंग-अंग में उभार दूँ
ओ प्रिया,
कह दो तो छंद प्यार का

खुली हुई साँकल है
खुली हुई खिडकियाँ
शोख हवाएँ देतीं
मंद-मंद थपकियाँ
भीतर बाहर अमंद
बिखरी है नेह गंध
साँस-साँस में उतार दूँ
ओ प्रिया,
कह दो सुर सितार का