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"अपना सा हर शख्स हुआ है /वीरेन्द्र खरे 'अकेला'" के अवतरणों में अंतर

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सूना घर-आँगन लागे है ए साथी
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अपना सा हर शख़्स हुआ है  
बिन तेरे ना मन लागे है ए साथी
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ये कैसा उन्माद जगा है  
  
तुझसे थीं हर सिम्त बहारें, बिन तेरे
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सुख से है सौतेला रिश्ता
उजड़ा हर उपवन लागे है ए साथी
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दुख जीवन का भाई सगा है  
  
दुख से बोझिल साँसें रूकने को आतुर
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शिक्षा के प्रति देख समर्पण
थमती सी धड़कन लागे है ए साथी
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वज़नी बच्चे से बस्ता है  
  
नयनों का जल भूला सब मर्यादाएँ
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आ मालूम करें असलीयत
जब चाहे बरसन लागे है ए साथी
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बैनर का उन्वान भला है  
  
जाने क्या है तुझसे दो दिन की यारी
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अगला दिन अच्छा गुज़रेगा
जन्मों का बन्धन लागे है ए साथी
+
हर दिन ये अनुमान मरा है  
 
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18:56, 17 जनवरी 2012 के समय का अवतरण

अपना सा हर शख़्स हुआ है
ये कैसा उन्माद जगा है

सुख से है सौतेला रिश्ता
दुख जीवन का भाई सगा है

शिक्षा के प्रति देख समर्पण
वज़नी बच्चे से बस्ता है

आ मालूम करें असलीयत
बैनर का उन्वान भला है

अगला दिन अच्छा गुज़रेगा
हर दिन ये अनुमान मरा है