भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"धुन लगे दिन / मुत्तुलक्ष्मी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुत्तुलक्ष्मी }}{{KKAnthologyDeshBkthi}} {{KKCatKavita‎}}<poem>दर्रा सा बन ग…)
 
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=मुत्तुलक्ष्मी
 
|रचनाकार=मुत्तुलक्ष्मी
}}{{KKAnthologyDeshBkthi}}
+
}}
 
{{KKCatKavita‎}}<poem>दर्रा सा बन गया हैं  
 
{{KKCatKavita‎}}<poem>दर्रा सा बन गया हैं  
 
आधी राह सॆ लौटने का  
 
आधी राह सॆ लौटने का  

11:35, 2 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

दर्रा सा बन गया हैं
आधी राह सॆ लौटने का
हर दफा |

हॊता हैं भूलॊ का सामना
और टुकड़ों मॆ मिली
कामयाबी कॆ साथ
वापस भॆजॆ गए
अंतहीन
जीवन के लेखे |


बारंबार के आवागमन के बावजूद
खड्डॊ और टीलों की
वाकफियत काम नहीं आती
आड़े खड़े हैं रोड़े बनकर
मदद के लिए ले गए साधन |

कांच की दीवार पर
शोर भरी दस्तक के साथ
राह की खोज
गांठ खोलते खोलते
बढते जाते हैं रहस्य
महीनो और संवत्सरों को
बेरहमी से
सोख रहे दिनों में शांति
तूफान के केंद्र की मानिंद

अनुवाद डॉ. एच. बालसुब्रहमण्यम‌