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"जागो प्यारे / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’" के अवतरणों में अंतर
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− | ऐसा सुंदर समय न खोओ | + | भोर हुआ सूरज उग आया |
− | मेरे प्यारे अब मत | + | जल में पड़ी सुनहरी छाया |
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+ | '''''--- साभार: [[सरस्वती_पत्रिका|सरस्वती]], जून 1915''''' | ||
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13:53, 15 फ़रवरी 2018 के समय का अवतरण
कई जगहों पर यह रचना द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी जी या सोहनलाल द्विवेदी जी की बताई जाती है; जबकि वास्तव में यह रचना अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी की है।
उठो लाल अब आँखे खोलो
पानी लाई हूँ मुँह धो लो
बीती रात कमल दल फूले
उनके ऊपर भंवरे डोले
चिड़िया चहक उठी पेड़ पर
बहने लगी हवा अति सुंदर
नभ में न्यारी लाली छाई
धरती ने प्यारी छवि पाई
भोर हुआ सूरज उग आया
जल में पड़ी सुनहरी छाया
ऐसा सुंदर समय न खोओ
मेरे प्यारे अब मत सोओ
--- साभार: सरस्वती, जून 1915