भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आंदोलन / मधुप मोहता" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुप मोहता |संग्रह=समय, सपना और तुम ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
और चलो मत अंगारों पर। | और चलो मत अंगारों पर। | ||
मेरा लहू बिखर जाएगा | मेरा लहू बिखर जाएगा | ||
− | नारे बनकर | + | नारे बनकर दीवारों पर। |
'''(कनु सान्याल के लिए)''' | '''(कनु सान्याल के लिए)''' | ||
</Poem> | </Poem> |
09:23, 14 मार्च 2020 के समय का अवतरण
मेरी भूख उभर आई है
गड्ढे बन मेरे गालों पर।
मेरी प्यास सिमट आई है
पपड़ी बन सूखे अधरों पर।
मेरा दर्द ढलक आया है,
आंसू बन मेरी अलकों पर।
ओ समाज के ठेकेदारों,
ज्वालामुखी फूट जाएगा
और चलो मत अंगारों पर।
मेरा लहू बिखर जाएगा
नारे बनकर दीवारों पर।
(कनु सान्याल के लिए)