भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पाँच जोड़ बाँसुरी / ठाकुरप्रसाद सिंह" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) छो |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह | |संग्रह=वंशी और मादल / ठाकुरप्रसाद सिंह | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatNavgeet}} | |
+ | <poem> | ||
पाँच जोड़ बाँसुरी | पाँच जोड़ बाँसुरी | ||
− | |||
बासन्ती रात के विह्वल पल आख़िरी | बासन्ती रात के विह्वल पल आख़िरी | ||
− | |||
पर्वत के पार से बजाते तुम बाँसुरी | पर्वत के पार से बजाते तुम बाँसुरी | ||
− | |||
पाँच जोड़ बाँसुरी | पाँच जोड़ बाँसुरी | ||
− | |||
वंशी स्वर उमड़-घुमड़ रो रहा | वंशी स्वर उमड़-घुमड़ रो रहा | ||
− | |||
मन उठ चलने को हो रहा | मन उठ चलने को हो रहा | ||
− | |||
धीरज की गाँठ खुली लो लेकिन | धीरज की गाँठ खुली लो लेकिन | ||
− | |||
आधे अँचरा पर पिय सो रहा | आधे अँचरा पर पिय सो रहा | ||
− | |||
मन मेरा तोड़ रहा पाँसुरी | मन मेरा तोड़ रहा पाँसुरी | ||
− | |||
पाँच जोड़ बाँसुरी | पाँच जोड़ बाँसुरी | ||
+ | </poem> |
00:22, 20 मार्च 2011 के समय का अवतरण
पाँच जोड़ बाँसुरी
बासन्ती रात के विह्वल पल आख़िरी
पर्वत के पार से बजाते तुम बाँसुरी
पाँच जोड़ बाँसुरी
वंशी स्वर उमड़-घुमड़ रो रहा
मन उठ चलने को हो रहा
धीरज की गाँठ खुली लो लेकिन
आधे अँचरा पर पिय सो रहा
मन मेरा तोड़ रहा पाँसुरी
पाँच जोड़ बाँसुरी