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"धूप में निकलो / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
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धूप में निकलो घटाओं में | धूप में निकलो घटाओं में | ||
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नहाकर देखो | नहाकर देखो | ||
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ज़िन्दगी क्या है, किताबों को | ज़िन्दगी क्या है, किताबों को | ||
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हटाकर देखो | | हटाकर देखो | | ||
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सिर्फ़ आँखों से ही दुनिया | सिर्फ़ आँखों से ही दुनिया | ||
− | |||
नहीं देखी जाती | नहीं देखी जाती | ||
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दिल की धड़कन को भी बीनाई | दिल की धड़कन को भी बीनाई | ||
− | |||
बनाकर देखो | | बनाकर देखो | | ||
− | |||
पत्थरों में भी ज़बाँ होती है | पत्थरों में भी ज़बाँ होती है | ||
− | |||
दिल होते हैं | दिल होते हैं | ||
− | |||
अपने घर के दरो-दीवार | अपने घर के दरो-दीवार | ||
− | + | सजाकर देखो | | |
− | सजाकर देखो | + | |
− | + | ||
वो सितारा है चमकने दो | वो सितारा है चमकने दो | ||
− | |||
यूँ ही आँखों में | यूँ ही आँखों में | ||
− | |||
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म | क्या ज़रूरी है उसे जिस्म | ||
− | |||
बनाकर देखो | | बनाकर देखो | | ||
− | |||
फ़ासला नज़रों का धोका भी | फ़ासला नज़रों का धोका भी | ||
− | |||
तो हो सकता है | तो हो सकता है | ||
− | |||
चाँद जब चमके तो ज़रा हाथ | चाँद जब चमके तो ज़रा हाथ | ||
− | |||
बढाकर देखो | | बढाकर देखो | | ||
+ | |||
+ | '''ज्योति''' | ||
+ | </poem> |
19:13, 11 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण
धूप में निकलो घटाओं में
नहाकर देखो
ज़िन्दगी क्या है, किताबों को
हटाकर देखो |
सिर्फ़ आँखों से ही दुनिया
नहीं देखी जाती
दिल की धड़कन को भी बीनाई
बनाकर देखो |
पत्थरों में भी ज़बाँ होती है
दिल होते हैं
अपने घर के दरो-दीवार
सजाकर देखो |
वो सितारा है चमकने दो
यूँ ही आँखों में
क्या ज़रूरी है उसे जिस्म
बनाकर देखो |
फ़ासला नज़रों का धोका भी
तो हो सकता है
चाँद जब चमके तो ज़रा हाथ
बढाकर देखो |
ज्योति