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"रोटी पर एक कविता / धूमिल" के अवतरणों में अंतर

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19:48, 12 मार्च 2012 के समय का अवतरण

धूमिल की अंतिम कविता जिसे बिना नाम दिये ही वे संसार छोड़ कर चल बसे ।

शब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना कि यह
लोहे की आवाज़ है या
मिट्टी में गिरे हुए खून
का रंग।

लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
घोडे से पूछो
जिसके मुंह में लगाम है।