"स्त्री देह / पाब्लो नेरूदा" के अवतरणों में अंतर
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− | स्त्री देह, सफ़ेद पहाड़ियाँ, उजली रानें | + | स्त्री देह, सफ़ेद पहाड़ियाँ, उजली रानें |
− | तुम बिल्कुल वैसी दिखती हो जैसी यह दुनिया | + | तुम बिल्कुल वैसी दिखती हो जैसी यह दुनिया |
− | समर्पण में | + | समर्पण में लेटी— |
− | मेरी रूखी किसान देह धँसती है तुममें | + | मेरी रूखी किसान देह धँसती है तुममें |
− | और धरती की गहराई से लेती एक वंशवृक्षी उछाल । | + | और धरती की गहराई से लेती एक वंशवृक्षी उछाल । |
− | अकेला था मैं एक सुरंग की तरह, पक्षी भरते उड़ान मुझ में | + | अकेला था मैं एक सुरंग की तरह, पक्षी भरते उड़ान मुझ में |
− | रात मुझे जलमग्न कर देती अपने परास्त कर देने वाले हमले से | + | रात मुझे जलमग्न कर देती अपने परास्त कर देने वाले हमले से |
− | ख़ुद को बचाने के वास्ते एक हथियार की तरह गढ़ा मैंने तुम्हें, | + | ख़ुद को बचाने के वास्ते एक हथियार की तरह गढ़ा मैंने तुम्हें, |
− | एक तीर की तरह मेरे धनुष में, एक पत्थर जैसे गुलेल में | + | एक तीर की तरह मेरे धनुष में, एक पत्थर जैसे गुलेल में |
− | गिरता है प्रतिशोध का समय लेकिन, और मैं तुझे प्यार करता हूँ | + | गिरता है प्रतिशोध का समय लेकिन, और मैं तुझे प्यार करता हूँ |
− | चिकनी हरी काई की रपटीली त्वचा का, यह ठोस बेचैन जिस्म दुहता हूँ मैं | + | चिकनी हरी काई की रपटीली त्वचा का, यह ठोस बेचैन जिस्म दुहता हूँ मैं |
− | ओह ! ये गोलक वक्ष के, ओह ! ये कहीं खोई-सी आँखें, | + | ओह ! ये गोलक वक्ष के, ओह ! ये कहीं खोई-सी आँखें, |
− | ओह ! ये गुलाब तरुणाई के, ओह ! तुम्हारी आवाज़ धीमी और उदास ! | + | ओह ! ये गुलाब तरुणाई के, ओह ! तुम्हारी आवाज़ धीमी और उदास ! |
− | ओ मेरी प्रिया-देह ! मैं तेरी कृपा में बना | + | ओ मेरी प्रिया-देह ! मैं तेरी कृपा में बना रहूँगा |
− | मेरी प्यास, मेरी अन्तहीन इच्छाएँ, ये बदलते हुए राजमार्ग ! | + | मेरी प्यास, मेरी अन्तहीन इच्छाएँ, ये बदलते हुए राजमार्ग ! |
− | उदास नदी-तालों से बहती सतत प्यास और पीछे हो लेती थकान, | + | उदास नदी-तालों से बहती सतत प्यास और पीछे हो लेती थकान, |
− | और यह असीम पीड़ा ! | + | और यह असीम पीड़ा ! |
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+ | '''अँग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद : मधु शर्मा''' | ||
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22:01, 2 जून 2012 के समय का अवतरण
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स्त्री देह, सफ़ेद पहाड़ियाँ, उजली रानें
तुम बिल्कुल वैसी दिखती हो जैसी यह दुनिया
समर्पण में लेटी—
मेरी रूखी किसान देह धँसती है तुममें
और धरती की गहराई से लेती एक वंशवृक्षी उछाल ।
अकेला था मैं एक सुरंग की तरह, पक्षी भरते उड़ान मुझ में
रात मुझे जलमग्न कर देती अपने परास्त कर देने वाले हमले से
ख़ुद को बचाने के वास्ते एक हथियार की तरह गढ़ा मैंने तुम्हें,
एक तीर की तरह मेरे धनुष में, एक पत्थर जैसे गुलेल में
गिरता है प्रतिशोध का समय लेकिन, और मैं तुझे प्यार करता हूँ
चिकनी हरी काई की रपटीली त्वचा का, यह ठोस बेचैन जिस्म दुहता हूँ मैं
ओह ! ये गोलक वक्ष के, ओह ! ये कहीं खोई-सी आँखें,
ओह ! ये गुलाब तरुणाई के, ओह ! तुम्हारी आवाज़ धीमी और उदास !
ओ मेरी प्रिया-देह ! मैं तेरी कृपा में बना रहूँगा
मेरी प्यास, मेरी अन्तहीन इच्छाएँ, ये बदलते हुए राजमार्ग !
उदास नदी-तालों से बहती सतत प्यास और पीछे हो लेती थकान,
और यह असीम पीड़ा !
अँग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद : मधु शर्मा