"पेड़ कटते वक्त / बुद्धिनाथ मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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− | गुदड़िया=गुदड़ी ओढ़ने वाले एक सम्प्रदाय विशेष के साधु; विग्रह=देवता की प्रतिमा | + | गुदड़िया=गुदड़ी ओढ़ने वाले एक सम्प्रदाय विशेष के साधु; |
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शेष= शेषनाग को भाषा का सबसे बड़ा ज्ञानी माना जाता है । | शेष= शेषनाग को भाषा का सबसे बड़ा ज्ञानी माना जाता है । |
16:27, 27 सितम्बर 2007 के समय का अवतरण
शब्द मुझसे पूछ बैठा आज
तुम मेरी कीमत समझते हो ?
बूझते हो क्या मेरी आवाज़ ?
शब्द मुझसे पूछ बैठा आज ।
पेड़ कटते वक़्त होता मैं नहीं
होते वहाँ पर यंत्रणा-आक्रोश
होती चीख
तुम हवा से मांगते मुझको
कि जैसे मांगता कोई गुदड़िया
चीथड़ों की भीख
मंत्र या अपशब्द मुझसे
किस तरह बनते
जानते हो राज ?
शब्द मुझसे पूछ बैठा आज ।
मैं नगीने-सा कभी जड़ता
अंगूठी में
और चिड़िया बन कभी
सेती मुझे कविता
मैं तराशा जब गया
कोई बना विग्रह
शेष के मस्तक चमकता नित्य
फण-मणि-सा
मैं उठा तो लघु हुई आकाशगंगाएँ
पर गिरा तो क्यों हुआ मैं गाज ?
शब्द मुझसे पूछ बैठा आज ।
गुदड़िया=गुदड़ी ओढ़ने वाले एक सम्प्रदाय विशेष के साधु;
विग्रह=देवता की प्रतिमा
शेष= शेषनाग को भाषा का सबसे बड़ा ज्ञानी माना जाता है ।
(रचनाकाल : 1982)