"ओरे मेरे भिखारी ! / रवीन्द्रनाथ ठाकुर" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर }} {{KKCatKavita}} [[Category:...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKAnooditRachna | {{KKAnooditRachna | ||
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर | |रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर | ||
+ | |संग्रह=निरुपमा, करना मुझको क्षमा / रवीन्द्रनाथ ठाकुर | ||
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} |
16:18, 3 जून 2012 के समय का अवतरण
|
ओगो काङाल, आमारे काङाल करेछ, आरो की तोमार चाइ ।
ओगो भिखारि, आमार भिखारि, चलेछ की कातर गान गाई ।।
ओरे, ओरे भिखारी, मुझे किया है भिखारी,
और चाहो भला क्या तुम !
ओरे ओरे भिखारी, ओरे मेरे भिखारी,
गान कातर सुनाते हो क्यों ।।
रोज़ दूँगी तुम्हें धन नया ही अरे,
साध पाली थी मन में यही,
सौंप सब कुछ दिया, एक पल में ही तो
पास मेरे बचा कुछ नहीं ।।
तुमको पहनाया मैंने वसन ।
घेर आँचल से तुमको लिया ।।
आस पूरी की मैंने तुम्हारी,
अपने संसार से सब दिया ।।
मेरा मन प्राण यौवन सभी,
देखो मुट्ठी, उसी में तो है ।।
ओरे मेरे भिखारी, ओरे, ओरे भिखारी
हाय चाहो अगर और भी,
कुछ तो दो फिर मुझे और तुम ।।
लौटा जिससे सकूँ उसको
तुमको ही मैं,
ओ भिखारी ।।
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत 33 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)