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"मैं चलता / उदयशंकर भट्ट" के अवतरणों में अंतर

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'''मैं चलता'''
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'मैं चलता मेरे साथ नया सावन चलता है,
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मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है।
मैं चलता मेरे साथ नया सावन चलता है
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मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है
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उत्थान पतन कंदुक पर मैं गिरता और उछलता
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उत्थान पतन-कंदुक पर मैं गिरता और उछलता,
सांसों की दीपशिखा में मैं लौ सा यह जीवन जलता
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सांसों की दीपशिखा में लौ सा यह जीवन जलता,
धूमायित अगुरू सुरभि सा मैं छीज रहा पल पल
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धूमायित अगुरु सुरभि-सा मैं छीज रहा पल-पल,
मेरी वाणी के स्वर में सागर भरता निज संबल
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मेरी वाणी के स्वर में सागर भरता निज सम्बल,
  
मैं चलता मेरे साथ अहं गर्जन चलता है
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मैं चलता मेरे साथ 'अहं गर्जन चलता है।
मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है
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मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है।
  
मैं चलता रवि शशि चलते किरणों के पंख लगाकर
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मैं चलता रवि-शशि चलते किरणों के पंख सजाकर,
भू चलती सतत प्रगति पथ नदियों के हार बनाकर  
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भू चलती सतत प्रगति-पथ नदियों के हार बनाकर,
झरने झर झर झर झरते भर भर भरती सरिताऐं
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झरने झर-झर-झर चलते भर-भर बहतीं सरिताएं,
दिन रात चला करते हैं चलते तरूवर लतिकाऐं
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दिन रात चला करते हैं, चलते तरुवर, लतिकाएं,
  
मैं चलता मेरे साथ पृकृति कानन चलता है
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मैं चलता मेरे साथ प्रकृति कानन चलता है,
मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है
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मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है।
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मैं चलता भीतर-भीतर दिल की दुनिया चलती है,
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कल्पना-किरण आभाएं अंतर-अंतर पलती हैं,
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उसके भीतर भी जीवन का ज्वार उठा करता है,
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उस जीवन में जीवन का अधिकार उठा करता है,
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उस अविक्षेप का इंगित बन बंधन चलता है,
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मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है।
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मैं चलता मेरे साथ-साथ साहस चलता है,
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मैं चलता मेरे साथ हृदय का रस चलता है,
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मैं चलता मेरे साथ निराशा, आशा चलती है,
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मैं चलता मेरे साथ सृजन की भाषा चलती,
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मैं चलता मेरे साथ ग्रहण, सर्जन चलता है,
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मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है।
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मैं चलता मेरे साथ जाति, संस्कृति चलती है,
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मैं चलता मेरे साथ संचिता स्मृति चलती है,
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मैं चलता मेरे साथ कुसुम का स्मय चलता है,
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मैं चलता मेरे साथ विश्व-विस्मय चलता है,
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मैं चलता मेरे साथ गगन वाहन चलता है,
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मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है।
 
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14:46, 17 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

'मैं चलता मेरे साथ नया सावन चलता है,
मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है।

उत्थान पतन-कंदुक पर मैं गिरता और उछलता,
सांसों की दीपशिखा में लौ सा यह जीवन जलता,
धूमायित अगुरु सुरभि-सा मैं छीज रहा पल-पल,
मेरी वाणी के स्वर में सागर भरता निज सम्बल,

मैं चलता मेरे साथ 'अहं गर्जन चलता है।
मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है।

मैं चलता रवि-शशि चलते किरणों के पंख सजाकर,
भू चलती सतत प्रगति-पथ नदियों के हार बनाकर,
झरने झर-झर-झर चलते भर-भर बहतीं सरिताएं,
दिन रात चला करते हैं, चलते तरुवर, लतिकाएं,

मैं चलता मेरे साथ प्रकृति कानन चलता है,
मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है।

मैं चलता भीतर-भीतर दिल की दुनिया चलती है,
कल्पना-किरण आभाएं अंतर-अंतर पलती हैं,
उसके भीतर भी जीवन का ज्वार उठा करता है,
उस जीवन में जीवन का अधिकार उठा करता है,
उस अविक्षेप का इंगित बन बंधन चलता है,

मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है।
मैं चलता मेरे साथ-साथ साहस चलता है,

मैं चलता मेरे साथ हृदय का रस चलता है,
मैं चलता मेरे साथ निराशा, आशा चलती है,
मैं चलता मेरे साथ सृजन की भाषा चलती,
मैं चलता मेरे साथ ग्रहण, सर्जन चलता है,
मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है।
मैं चलता मेरे साथ जाति, संस्कृति चलती है,
मैं चलता मेरे साथ संचिता स्मृति चलती है,
मैं चलता मेरे साथ कुसुम का स्मय चलता है,
मैं चलता मेरे साथ विश्व-विस्मय चलता है,
मैं चलता मेरे साथ गगन वाहन चलता है,
मैं चलता मेरे साथ नया जीवन चलता है।