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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : गरीबी ! तू न यहाँ से जा.. ('''रचनाकार:''' [[कोदूराम दलित]])</div>
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</tr>
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</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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गरीबी ! तू न यहाँ से जा
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एक बात मेरी सुन, पगली
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बैठ यहाँ पर आ,
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गरीबी तू न यहाँ से जा...
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चली जाएगी तू यदि तो दीनों के दिन फिर जाएँगे
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<div style="text-align: center;">
मजदूर-किसान सुखी बनकर गुलछर्रे खूब उड़ाएँगे
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
फिर कौन करेगा पूँजीपतियों ,की इतनी परवाह
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</div>
गरीबी तू न यहाँ से जा...
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बेमौत मरेंगे बेचारे ये सेठ, महाजन, जमीनदार
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
धुल जाएगी यह चमक-दमक, ठंडा होगा सब कारबार
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
रक्षक बनकर, भक्षक मत बन, तू इन पर जुलुम न ढा
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अपरिचित पास आओ
गरीबी तू न यहाँ से जा...
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सारे गरीब नंगे रहकर दुख पाते हों तो पाने दे
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
दाने-दाने के लिए तरस मर जाते हों, मर जाने दे
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
यदि मरे–जिए कोई तो इसमें तेरी गलती क्या
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
गरीबी तू न यहाँ से जा...
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
यदि सुबह-शाम कुछ लोग व्यर्थ चिल्लाते हों, चिल्लाने दे
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सबमें अपनेपन की माया
’हो पूँजीवाद विनाश’ आदि के नारे इन्हें लगाने दे
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अपने पन में जीवन आया
है अपना ही अब राज-काज, तू गीत खुशी के गा
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</div>
गरीबी तू न यहाँ से जा...
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</div></div>
 
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यह अन्य देश नहीं, भारत है, समझाता हूँ मैं बार-बार
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कर मौज यहीं रह करके तू, हिम्मत न हार, हिम्मत न हार
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मैं नेक सलाह दे रहा हूँ, तू बिल्कुल मत घबरा
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गरीबी तू न यहाँ से जा...
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केवल धनिकों को छोड़ यहाँ पर सभी पुजारी तेरे हैं
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तू भी तो  कहते आई है ’ये मेरे हैं, ये मेरे हैं’
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सदियों से जिनको अपनाया है, उन्हें न अब ठुकरा
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गरीबी तू न यहाँ से जा...
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लाखों कुटियों के बीच खड़े आबाद रहें ये रंगमहल
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आबाद रहें ये रंगरलियाँ, आबाद रहे यह चहल-पहल
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तू जा के पूंजीपतियों पर, आफ़त नई न ला
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गरीबी तू न यहाँ से जा...
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ये धनिक और निर्धन तेरे जाने से सम हो जाएँगे
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तब तो परमेश्वर भी केवल समदर्शी ही कहलाएँगे
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फिर कौन कहेगा ’दीनबंधु’, उनको तू बतला
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गरीबी तू न यहाँ से जा...
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(रचनाकाल  लगभग १९६५)
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया