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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक :काश ऐसा होता .. ('''रचनाकार:''' [[लीना टिब्बी]] )</div>
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</td>
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</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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काश ऐसा होता
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कि ईश्वर
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मेरे बिस्तर के पास रखे
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पानी भरे गिलास के अन्दर से
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बैंगनी प्रकाश पुंज-सा अचानक प्रकट हो जाता...
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काश ऐसा होता
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<div style="text-align: center;">
कि ईश्वर
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
शाम की अजान बन कर
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हमारे ललाट से दिन भर की थकान पोंछ देता...
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काश ऐसा होता
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
कि ईश्वर
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
आसूँ की एक बूंद बन जाता
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अपरिचित पास आओ
जिसके लुढ़कने का अफ़सोस
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हम मनाते रहते पूरे-पूरे दिन...
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काश ऐसा होता
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
कि ईश्वर
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
रूप धर लेता एक ऐसे पाप का
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
हम कभी न थकते
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
जिसकी भूरी-भूरी प्रशंसा करते...
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
काश ऐसा होता
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सबमें अपनेपन की माया
कि ईश्वर
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अपने पन में जीवन आया  
शाम तक मुरझा जाने वाला गुलाब होता
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</div>
तो हर नई सुबह
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</div></div>
हम नया फूल ढूंढ कर ले आया करते...
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काश ऐसा होता...
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(लीना टिब्बी अरबी भाषा की जानी-मानी कवियत्री हैं )
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया