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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : स्त्री की तीर्थयात्रा '''रचनाकार:''' [[विश्वनाथ प्रसाद तिवारी]] </div>
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</td>
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</tr>
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</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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सवेरे-सवेरे
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उसने बर्तन साफ़ किए
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घर-भर के जूठे बर्तन
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झाड़ू-पोंछे के बाद
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बेटियों को संवार कर
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स्कूल रवाना किया
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सबके लिए बनाई चाय
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जब वह छोटा बच्चा ज़ोर-ज़ोर रोने लगा
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<div style="text-align: center;">
वह बीच में उठी पूजा छोड़कर
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
उसका सू-सू साफ़ किया
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</div>
  
दोपहर भोजन के आख़िरी दौर में
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
आ गए एक मेहमान
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
दाल में पानी मिला कर
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अपरिचित पास आओ
किया उसने अतिथि-सत्कार
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और बैठ गई चटनी के साथ
+
बची हुई रोटी लेकर
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क्षण भर चाहती थी वह आराम
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
कि आ गईं बेटियाँ स्कूल से मुरझाई हुईं
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
उनके टंट-घंट में जुटी
+
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
फिर जुटी संझा की रसोई में
+
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
 +
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
 +
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
रात में सबके बाद खाने बैठी
+
सबमें अपनेपन की माया
अब की रोटी के साथ थी सब्ज़ी भी
+
अपने पन में जीवन आया
जिसे पति ने अपनी रुचि से ख़रीदा था
+
</div>
 
+
</div></div>
बिस्तर पर गिरने से पहले
+
वह अकेले में थोड़ी देर रोई
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अपने स्वर्गीय बाबा की याद में
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फिर पति की बाँहों में
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सोचते-सोचते बेटियों के ब्याह के बारे में
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ग़ायब हो गई सपनों की दुनिया में
+
और नींद में ही पूरी कर ली उसने
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सभी तीर्थों की यात्रा ।
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</pre></center></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया