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"बारिश के दिन आ गए/ यश मालवीय" के अवतरणों में अंतर

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बारिश के दिन आ गए हँसे खेत खपरैल
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अबरोही बादल भरें फिर घाटी की गोद
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जब से आया गाँव में यह मौसम अवधूत
एक हँसी मे धुल गया मन का सारा मैल<br>
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अबरोही बादल भरें फिर घाटी की गोद<br>
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बदली हँसती शाम से मुँह पर रख रूमाल
बजा रहे हैं डूब कर अमजद अली सरोद<br>
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बादल के लच्छे खुले पेड़ कातते सूत
बादल भी मलने लगे अपने अंग भभूत<br>
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किसी बात का फिर हवा देने लगी सबूत
  
बदली हँसती शाम से मुँह पर रख रूमाल<br>
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कठिन गरीबी क्या करे अपना सरल स्वाभाव
साँसो में सौगंध है आँखें हैं वाचाल<br>
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छत से पानी रिस रहा जैसे रिसता घाव
  
बादल के लच्छे खुले पेड़ कातते सूत<br>
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मीठे दिन बरसात के खट्टी मीठी याद
किसी बात का फिर हवा देने लगी सबूत <br>
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एक खुशी के साथ हैं सौ गहरे अवसाद
  
कठिन गरीबी क्या करे अपना सरल स्वाभाव<br>
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बिजली चमके रात भर आफ़त में है जान
छत से पानी रिस रहा जैसे रिसता घाव <br>
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मैला आँचल भीगता सीला है गोदान
  
मीठे दिन बरसात के खट्टी मीठी याद<br>
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सासों में आसावरी आँखो में कल्यान
एक खुशी के साथ हैं सौ गहरे अवसाद<br>
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सहे किस तरह हैसियत बूँदो वाले बान
 
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बिजली चमके रात भर आफ़त में है जान<br>
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सासों में आसावरी आँखो में कल्यान<br>
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सहे किस तरह हैसियत बूँदो वाले बान<br>
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09:34, 22 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

बारिश के दिन आ गए हँसे खेत खपरैल
एक हँसी मे धुल गया मन का सारा मैल

अबरोही बादल भरें फिर घाटी की गोद
बजा रहे हैं डूब कर अमजद अली सरोद

जब से आया गाँव में यह मौसम अवधूत
बादल भी मलने लगे अपने अंग भभूत

बदली हँसती शाम से मुँह पर रख रूमाल
साँसो में सौगंध है आँखें हैं वाचाल

बादल के लच्छे खुले पेड़ कातते सूत
किसी बात का फिर हवा देने लगी सबूत

कठिन गरीबी क्या करे अपना सरल स्वाभाव
छत से पानी रिस रहा जैसे रिसता घाव

मीठे दिन बरसात के खट्टी मीठी याद
एक खुशी के साथ हैं सौ गहरे अवसाद

बिजली चमके रात भर आफ़त में है जान
मैला आँचल भीगता सीला है गोदान

सासों में आसावरी आँखो में कल्यान
सहे किस तरह हैसियत बूँदो वाले बान