"बरवै नायिका-भेद / रहीम" के अवतरणों में अंतर
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| − | + | (दोहा) | |
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| − | बाहर | + | कवित कह्यो दोहा कह्यो, तुलै न छप्य्।।क छंद। |
| − | सासु ननद | + | बिरच्या् यहै विचार कै, यह बरवैरस कंद।।1।। |
| − | पिय आवत | + | |
| − | बिहँसत चतुर तिरियवा बैठक दीन | + | (मंगलाचरण) |
| − | लै कै सुघर खुरपिया पिय के | + | |
| − | + | बंदौ देवि सरदवा, पद कर जोरि। | |
| − | + | बरनत काव्यस बरैवा, लगै न खोरि।।2।। | |
| − | जेहि जपि तोर बिरहवा करब निबाहु | + | |
| − | < | + | (उत्त्मा) |
| + | |||
| + | लखि अपराध पियरवा, नहिं रिस कीन। | ||
| + | बिहँसत चनन चउकिया, बैठक दीन।।3।। | ||
| + | |||
| + | (मध्यनमा) | ||
| + | |||
| + | बिनुगुन पिय-उर हरवा, उपट्यो हेरि। | ||
| + | चुप ह्वै चित्र पुतरिया, रहि मुख फेरि।।4।। | ||
| + | |||
| + | (अधमा) | ||
| + | |||
| + | बेरिहि बेर गुमनवा, जनि करु नारि। | ||
| + | मानिक औ गजमुकुता, जौ लगि बारि।।5।। | ||
| + | |||
| + | (स्व कीया) | ||
| + | |||
| + | रहत नयन के कोरवा, चितवनि छाय। | ||
| + | चलत न पग-पैजनियॉं, मग अहटाय।।6।। | ||
| + | |||
| + | (मुग्धाम) | ||
| + | |||
| + | लहरत लहर लहरिया, लहर बहार। | ||
| + | मोतिन जरी किनरिया, बिथुरे बार।।7।। | ||
| + | |||
| + | लागे आन नवेलियहि, मनसिज बान। | ||
| + | उसकन लाग उरोजवा दृग तिरछान।।8।। | ||
| + | |||
| + | (अज्ञातयौवना) | ||
| + | |||
| + | कवन रोग दुहुँ छतिया, उपजे आय। | ||
| + | दुखि दुखि उठै करेजवा, लगि जनु जाय।।9।। | ||
| + | |||
| + | (ज्ञातयौवना) | ||
| + | |||
| + | औचक आइ जोबनवाँ, मोहि दुख दीन। | ||
| + | छुटिगो संग गोइअवॉं नहि भल कीन।।10।। | ||
| + | |||
| + | (नवोढ़ा) | ||
| + | |||
| + | पहिरति चूनि चुनरिया, भूषन भाव। | ||
| + | नैननि देत कजरवा, फूलनि चाव।।11।। | ||
| + | |||
| + | (विश्रब्धर नवोढ़ा) | ||
| + | |||
| + | जंघन जोरत गोरिया, करत कठोर। | ||
| + | छुअन न पावै पियवा, कहुँ कुच-कोर।।12।। | ||
| + | |||
| + | (मध्यतमा) | ||
| + | |||
| + | ढीलि आँख जल अँचवत, तरुनि सुभाय। | ||
| + | धरि खसिकाइ घइलना, मुरि मुसुकाय।।13।। | ||
| + | |||
| + | (प्रौढ़ रतिप्रीता) | ||
| + | |||
| + | भोरहि बोलि कोइलिया, बढ़वति ताप। | ||
| + | घरी एक घरि अलवा, रह चुपचाप।।14।। | ||
| + | |||
| + | (परकीया) | ||
| + | |||
| + | सुनि सुनि कान मुरलिया, रागन भेद। | ||
| + | गैल न छाँड़त गोरिया, गनत न खेद।।15।। | ||
| + | |||
| + | (ऊढ़ा) | ||
| + | |||
| + | निसु दिन सासु ननदिया, मुहि घर हेर। | ||
| + | सुनन न देत मुरलिया मधुरी टेर।।161। | ||
| + | |||
| + | (अनूढ़ा) | ||
| + | |||
| + | मोहि बर जोग कन्हैाया लागौं पाय। | ||
| + | तुहु कुल पूज देवतवा, होहु सहाय।।17।। | ||
| + | |||
| + | (भूत सुरति-संगोपना) | ||
| + | |||
| + | चूनत फूल गुलबवा डार कटील। | ||
| + | टुटिगा बंद अँगियवा, फटि पट नील।।18।। | ||
| + | |||
| + | आयेसि कवनेउ ओरवा, सुगना सार। | ||
| + | परिगा दाग अधरवा, चोंच चोटार।।19।। | ||
| + | |||
| + | (वर्तमान सुरति-गोपना) | ||
| + | |||
| + | मं पठयेउ जिहि मकवॉं, आयेस साध। | ||
| + | छुटिगा सीस को जुरवा, कसि के बाँध।।20।। | ||
| + | |||
| + | मुहि तुहि हरबर आवत, भा पथ खेद। | ||
| + | रहि रहि लेत उससवा, बहत प्रसेद।।21।। | ||
| + | |||
| + | (भविष्यत सुरति-गोपनान) | ||
| + | |||
| + | होइ कत आइ बदरिया, बरखहि पाथ। | ||
| + | जैहौं घन अमरैया, सुगना साथ।।22।। | ||
| + | |||
| + | जैहौं चुनन कुसुमियॉं, खेत बडिे दूर। | ||
| + | नौआ केर छोहरिया, मुहि सँग कूर।।23।। | ||
| + | |||
| + | (क्रिया-विदग्धान) | ||
| + | |||
| + | बाहिर लैके दियवा, बारन जाय। | ||
| + | सासु ननद ढिग पहुँचत, देत बुझाय।।24।। | ||
| + | |||
| + | (वचन-विदग्धाग) | ||
| + | |||
| + | तनिक सी नाक नथुनिया, मित हित नीक। | ||
| + | कहिति नाक पहिरावहु, चित दै सींक।।25।। | ||
| + | |||
| + | (लक्षिता) | ||
| + | |||
| + | आजु नैन के कजरा, औरे भाँत। | ||
| + | नागर नहे नवेलिया, सुदिने जात।।26।। | ||
| + | |||
| + | (अन्य -सुरति-दु:खिता) | ||
| + | |||
| + | बालम अस मन मिलियउँ, जस पय पानि। | ||
| + | हँसिनि भइल सवतिया, लइ बिलगानि।।27।। | ||
| + | |||
| + | (संभोग-दु:खिता) | ||
| + | |||
| + | मैं पठयउ जिहि कमवाँ, आयसि साध। | ||
| + | छुटिगो सीस को जुरवा, कसि के बाँधि।।28।। | ||
| + | |||
| + | मुहि तुहि हरबत आवत, भव पथ खेद। | ||
| + | रहि रहि लेत उससवा, बहत प्रसेद।।29।। | ||
| + | |||
| + | (प्रेम-गर्विता) | ||
| + | |||
| + | आपुहि देत जवकवा, गूँदत हार। | ||
| + | चुनि पहिराव चुनरिया, प्रानअधार।।30।। | ||
| + | |||
| + | अवरन पाय जवकवा, नाइन दीन। | ||
| + | मुहि पग आगर गोरिया, आनन कीन।।31।। | ||
| + | |||
| + | (रूप-गर्विता) | ||
| + | |||
| + | खीन मलिन बिखभैया, औगुन तीन। | ||
| + | मोहिं कहत विधुबदनी, पिय मतिहीन।।32।। | ||
| + | |||
| + | दातुल भयसि सुगरुवा, निरस पखान। | ||
| + | यह मधु भरल अधरवा, करसि गुमान।।33।। | ||
| + | |||
| + | (प्रथम अनुशयना, भावी-संकेतनष्टार) | ||
| + | |||
| + | धीरज धरु किन गोरिया करि अनुराग। | ||
| + | जात जहाँ पिय देसवा, घन बन बाग।। 34।। | ||
| + | |||
| + | जनि मरु रोय दुलहिया, कर मन ऊन। | ||
| + | सघन कुंज ससुररिया, औ घर सून।।35।। | ||
| + | |||
| + | (द्वितीय अनुशयना, संकेत-विघट्टना) | ||
| + | |||
| + | जमुना तीर तरुनिअहि लखि भो सूल। | ||
| + | झरिगो रूख बेइलिया, फुलत न फूल।।36।। | ||
| + | |||
| + | ग्रीषम दवत दवरिया, कुंज कुटीर। | ||
| + | तिमि तिमि तकत तरुनिअहिं, बाढ़ी पीर।।37।। | ||
| + | |||
| + | (तृतीय अनुशयना, रमणगमना) | ||
| + | |||
| + | मितवा करत बँसुरिया, सुमन सपात। | ||
| + | फिरि फिरि तकत तरुनिया, मन पछतात।।38।। | ||
| + | |||
| + | मित उत तें फिरि आयेउ, देखु न राम। | ||
| + | मैं न गई अमरैया, लहेउ न काम।।39।। | ||
| + | |||
| + | (मुदिता) | ||
| + | |||
| + | नेवते गइल ननदिया, मैके सासु। | ||
| + | दुलहिनि तोरि खबारिया,आवै आँसु।।40।। | ||
| + | |||
| + | जैहौं काल नेवतवा, भा दु:ख दून। | ||
| + | गॉंव करेसि रखवरिया, सब घर सून।।41।। | ||
| + | |||
| + | (कुलटा) | ||
| + | |||
| + | जस मद मातल हथिया, हुमकत जात। | ||
| + | चितवत जात तरुनिया, मन मुसकात।।42।। | ||
| + | |||
| + | चितवत ऊँच अटरिया, दहिने बाम। | ||
| + | लाखन लखत विछियवा, लखी सकाम।।43।। | ||
| + | |||
| + | (सामान्या गणिका) | ||
| + | |||
| + | लखि लखि धनिक नयकवा बनवत भेष। | ||
| + | रहि गइ हेरि अरसिया कजरा रेख।।44।। | ||
| + | |||
| + | (मुग्धाि प्रोषितपतिका) | ||
| + | |||
| + | कासो कहौ सँदेसवा, पिय परदेसु। | ||
| + | लागेहु चइत न फले तेहि बन टेसु।।45।। | ||
| + | |||
| + | (मध्यात प्रोषितपतिका) | ||
| + | |||
| + | का तुम जुगुल तिरियवा, झगरति आय। | ||
| + | पिय बिन मनहुँ अटरिया, मुहि न सुहाय।।46।। | ||
| + | |||
| + | (प्रौढ़ा प्रोषितपतिका) | ||
| + | |||
| + | तैं अब जासि बेइलिया, बरु जरि मूल। | ||
| + | बिनु पिय सूल करेजवा, लखि तुअ फूल।।47।। | ||
| + | |||
| + | या झर में घर घर में, मदन हिलोर। | ||
| + | पिय नहिं अपने कर में, करमै खोर।।48।। | ||
| + | |||
| + | (मुग्धाप खंडिता) | ||
| + | |||
| + | सखि सिख मान नवेलिया, कीन्हेोसि मान। | ||
| + | पिय बिन कोपभवनवा, ठानेसि ठान।।49।। | ||
| + | |||
| + | सीस नवायँ नवेलिया, निचवइ जोय। | ||
| + | छिति खबि, छोर छिगुरिया, सुसुकति रोय।।50।। | ||
| + | |||
| + | गिरि गइ पीय पगरिया, आलस पाइ। | ||
| + | पवढ़हु जाइ बरोठवा, सेज डसाइ।।51।। | ||
| + | |||
| + | पोछहु अधर कजरवा, जावक भाल। | ||
| + | उपजेउ पीतम छतिया, बिनु गुन माल।।52।। | ||
| + | |||
| + | (प्रौढ़ा खंडिता) | ||
| + | |||
| + | पिय आवत अँगनैया, उठि कै लीन। | ||
| + | साथे चतुर तिरियवा, बैठक दीन।।53।। | ||
| + | |||
| + | पवढ़हु पीय पलँगिया, मींजहुँ पाय। | ||
| + | रैनि जगे कर निंदिया, सब मिटि जाय।।54।। | ||
| + | |||
| + | (परकीया खंडिता) | ||
| + | |||
| + | जेहि लगि सजन सनेहिया, छुटि घर बार। | ||
| + | आपन हित परिवरवा, सोच परार।।55।। | ||
| + | |||
| + | (गणिका खंडिता) | ||
| + | |||
| + | मितवा ओठ कजरवा, जावक भाल। | ||
| + | लियेसि काढ़ि बइरिनिया, तकि मनिमाल।।56।। | ||
| + | |||
| + | (मुग्धाज कलहांतरिता) | ||
| + | |||
| + | आयेहु अबहिं गवनवा, जुरुते मान। | ||
| + | अब रस लागिहि गोरिअहि, मन पछतान।।57।। | ||
| + | |||
| + | (मग्धाि कलहांतरिता) | ||
| + | |||
| + | मैं मतिमंद तिरियवा, परिलिउँ भोर। | ||
| + | तेहि नहिं कंत मनउलेउँ, तेहि कछु खोर।।58।। | ||
| + | |||
| + | (प्रौढ़ा कलहांतरिता) | ||
| + | |||
| + | थकि गा करि मनुहरिया, फिरि गा पीय। | ||
| + | मैं उठि तुरति न लायेउँ, हिमकर हीय।।59।। | ||
| + | |||
| + | (परकीया कलहांतरिता) | ||
| + | |||
| + | जेहि लगि कीन बिरोधवा, ननद जिठानि। | ||
| + | रखिउँ न लाइ करेजवा, तेहि हित जानि।।60।। | ||
| + | |||
| + | (गणिका कलहांतरिता) | ||
| + | |||
| + | जिहि दीन्हेलउ बहु बिरिया, मुहि मनिमाल। | ||
| + | तिहि ते रूठेउँ सखिया, फिरि गे लाल।।61।। | ||
| + | |||
| + | (मुग्धाठ विप्रलब्धाा) | ||
| + | |||
| + | लखे न कंत सहेटवा, फिरि दुबराय। | ||
| + | धनिया कमलबदनिया, गइ कुम्हिलाय।।62।। | ||
| + | |||
| + | (मध्याब विप्रलब्धाइ) | ||
| + | |||
| + | देखि न केलि-भवनवा, नंदकुमार। | ||
| + | लै लै ऊँच उससवा, भइ बिकरार।।63।। | ||
| + | |||
| + | (प्रौढ़ा विप्रलब्धान) | ||
| + | |||
| + | देखि न कंत सहेटवा, भा दुख पूर। | ||
| + | भौ तन नैन कजरवा, होय गा झूर।।64।। | ||
| + | |||
| + | (परकीया विप्रलब्धा ) | ||
| + | |||
| + | बैरिन भा अभिसरवा, अति दुख दानि। | ||
| + | प्रातउ मिलेउ न मितवा, भइ पछितानि।।65।। | ||
| + | |||
| + | (गणिका विप्रलब्धात) | ||
| + | |||
| + | करिकै सोरह सिंगरवा, अतर लगाइ। | ||
| + | मिलेउ न लाल सहेटवा, फिरि पछिताई।।66।। | ||
| + | |||
| + | (मुग्धाल उत्कं,ठिता) | ||
| + | |||
| + | भा जुग जाम जमिनिया, पिय नहिं जाय। | ||
| + | राखेउ कवन सवतिया, रहि बिलमाय।।67।। | ||
| + | |||
| + | (मध्या उत्कं,ठिता) | ||
| + | |||
| + | जोहत तीय अँगनवा, पिय की बाट। | ||
| + | बेचेउ चतुर तिरियवा, केहि के हाट।।68।। | ||
| + | |||
| + | (प्रौढ़ा उत्कंाठिता) | ||
| + | |||
| + | पिय पथ हेरत गोरिया, भा भिनसार। | ||
| + | चलहु न करिहि तिरियवा, तुअ इतबार।।69।। | ||
| + | |||
| + | (परकीया उत्कंिठिता) | ||
| + | |||
| + | उठि उठि जात खिरिकिया, जोहत बाट। | ||
| + | कतहुँ न आवत मितवा, सुनि सुनि खाट।।70।। | ||
| + | |||
| + | (गणिका उत्कंवठिता) | ||
| + | |||
| + | कठिन नींद भिनुसरवा, आलस पाइ। | ||
| + | धन दै मूरख मितवा, रहल लोभाइ।।71।। | ||
| + | |||
| + | (मुग्धा वासकसज्जार) | ||
| + | |||
| + | हरुए गवन नबेलिया, दीठि बचाइ। | ||
| + | पौढ़ी जाइ पलँगिया, सेज बिछाइ।।72।। | ||
| + | |||
| + | (मध्या वासकसज्जास) | ||
| + | |||
| + | सुभग बिछाई पलँगिया, अंग सिंगार। | ||
| + | चितवत चौंकि तरुनिया, दै दृ्ग द्वार।।73।। | ||
| + | |||
| + | (प्रौढ़ा वासकसज्जास) | ||
| + | |||
| + | हँसि हँसि हेरि अरसिया, सहज सिंगार। | ||
| + | उतरत चढ़त नवेलिया, तिय कै बार।।74।। | ||
| + | |||
| + | (परकीया वासकसज्जा,) | ||
| + | |||
| + | सोवत सब गुरू लोगवा, जानेउ बाल। | ||
| + | दीन्हेबसि खोलि खिरकिया, उठि कै हाल।।75।। | ||
| + | |||
| + | (सामान्याह वासकसज्जा,) | ||
| + | |||
| + | कीन्हेमसि सबै सिंगरवा, चातुर बाल। | ||
| + | ऐहै प्रानपिअरवा, लै मनिमाल।।76।। | ||
| + | |||
| + | (मुग्धाय स्वांधीनपतिका) | ||
| + | |||
| + | आपुहि देत जवकवा, गहि गहि पाय। | ||
| + | आपु देत मोहि पियवा, पान खवाय।।77।। | ||
| + | |||
| + | (मध्याो स्वांधीनपतिका) | ||
| + | |||
| + | प्रीतम करत पियरवा, कहल न जात। | ||
| + | रहत गढ़ावत सोनवा, इहै सिरात।।78।। | ||
| + | |||
| + | (प्रौढ़ा स्वााधीनपतिका) | ||
| + | |||
| + | मैं अरु मोर पियरवा, जस जल मीन। | ||
| + | बिछुरत तजत परनवा, रहत अधीन।।79।। | ||
| + | |||
| + | (परकीया स्वााधीनपतिका) | ||
| + | |||
| + | भो जुग नैन चकोरवा, पिय मुख चंद। | ||
| + | जानत है तिय अपुनै, मोहि सुखकंद।।80।। | ||
| + | |||
| + | (सामान्याअ स्वािधीनपतिका) | ||
| + | |||
| + | लै हीरन के हरवा, मानिकमाल। | ||
| + | मोहि रहत पहिरावत, बस ह्वै लाल।।81।। | ||
| + | |||
| + | (मुग्धाह अभिसारिका) | ||
| + | |||
| + | चलीं लिवाइ नवेलिअहि, सखि सब संग। | ||
| + | जस हुलसत गा गोदवा, मत्तस मतंग।।82।। | ||
| + | |||
| + | (मध्याग अभिसारिका) | ||
| + | |||
| + | पहिरे लाल अछुअवा, तिय-गज पाय। | ||
| + | चढ़े नेह-हथिअवहा, हुलसत जाय।।83।। | ||
| + | |||
| + | (प्रौढ़ा अभिसारिका) | ||
| + | |||
| + | चली रैनि अँधिअरिया, साहस गाढि। | ||
| + | पायन केर कँगनिया, डारेसि काढि।।84।। | ||
| + | |||
| + | (परकीया क(ष्णा,भिसारिका) | ||
| + | |||
| + | नील मनिन के हरवा, नील सिंगार। | ||
| + | किए रैनि अँधिअरिया, धनि अभिसार।।85।। | ||
| + | |||
| + | (शुक्लाँभिसारिका) | ||
| + | |||
| + | सेत कुसुम कै हरवा भूषन सेत। | ||
| + | चली रैनि उँजिअरिया, पिय के हेत।।86।। | ||
| + | |||
| + | (दिवाभिसारिका) | ||
| + | |||
| + | पहिरि बसन जरतरिया, पिय के होत। | ||
| + | चली जेठ दुपहरिया, मिलि रवि जोत।।87।। | ||
| + | |||
| + | (गणिका अभिसारिका) | ||
| + | |||
| + | धन हित कीन्हि सिंगरवा, चातुर बाल। | ||
| + | चली संग लै चेरिया, जहवाँ लाल।।88।। | ||
| + | |||
| + | (मुग्धा प्रवत्य्व त्पतिका) | ||
| + | |||
| + | परिगा कानन सखिया पिय कै गौन। | ||
| + | बैठी कनक पलँगिया, ह्वै कै मौन।।89।। | ||
| + | |||
| + | (मध्याप प्रवत्य्व त्पतिका) | ||
| + | |||
| + | सुठि सुकुमार तरुयिका, सुनि पिय-गौन। | ||
| + | लाजनि पौढि ओबरिया, ह्वै कै मौन।।90।। | ||
| + | |||
| + | (प्रौढ़ा प्रवत्य्बरित्पतिका) | ||
| + | |||
| + | बन धन फूलहि टेसुआ, बगिअनि बेलि। | ||
| + | चलेउ बिदेस पियरवा फगुआ खेलि।।91।। | ||
| + | |||
| + | (परकीया प्रवत्य्ग त्पतिका) | ||
| + | |||
| + | मितवा चलेउ बिदेसवा मन अनुरागि। | ||
| + | पिय की सुरत गगरिया, रहि मग लागि।।92।। | ||
| + | |||
| + | (गणिका प्रवत्य् म त्पतिका) | ||
| + | |||
| + | पीतम इक सुमिरिनिया, मुहि देइ जाहु। | ||
| + | जेहि जप तोर बिरहवा, करब निबाहु।।93।। | ||
| + | |||
| + | (गुग्धार आगतपतिका) | ||
| + | |||
| + | बहुत दिवस पर पियवा, आयेउ आज। | ||
| + | पुलकित नवल दुलहिवा, कर गृह-काज।।94।। | ||
| + | |||
| + | (मध्याल आगतपतिका) | ||
| + | |||
| + | पियवा आय दुअरवा, उठि किन देख। | ||
| + | दुरलभ पाय बिदेसिया,मुद अवरेख।।95।। | ||
| + | |||
| + | (प्रौढ़ा आगतपतिका) | ||
| + | |||
| + | आवत सुनत तिरियवा, उठि हरषाइ। | ||
| + | तलफत मनहुँ मछरिया, जनु जल पाइ।।96।। | ||
| + | |||
| + | (परकीया आगतपतिका) | ||
| + | |||
| + | पूछन चली खबरिया, मितवा तीर। | ||
| + | हरखित अतिहि तिरियवा पहिरत चीर।।97।। | ||
| + | |||
| + | (गणिका आगतपतिका) | ||
| + | |||
| + | तौ लगि मिटिहि न मितवा, तन की पीर। | ||
| + | जौ लगि पहिर न हरवा, जटित सुहीर।।98।। | ||
| + | |||
| + | (नायक) | ||
| + | |||
| + | सुंदर चतुर धनिकवा, जाति के ऊँच। | ||
| + | केलि-कला परबिनवा, सील समूच।।99।। | ||
| + | |||
| + | (नायक भेद) | ||
| + | |||
| + | पति, उपपति, वैसिकवा, त्रिबिध बखान। | ||
| + | |||
| + | (पति लक्षण) | ||
| + | |||
| + | बिधि सो ब्याणह्यो गुरु जन पति सो जानि।।100।। | ||
| + | |||
| + | (पति) | ||
| + | |||
| + | लैकै सुघर खुरुपिया, पिय के साथ। | ||
| + | छइवै एक छतरिया, बरखत पाथ।।101।। | ||
| + | |||
| + | (अनुकूल) | ||
| + | |||
| + | करत न हिय अपरधवा, सपनेहुँ पीय। | ||
| + | मान करन की बेरिया, रहि गइ हीय।।102।। | ||
| + | |||
| + | (दक्षिण) | ||
| + | |||
| + | सौतिन करहि निहोरवा, हम कहँ देहु। | ||
| + | चुन चु चंपक चुरिया, उच से लेहु।।103।। | ||
| + | |||
| + | (शठ) | ||
| + | |||
| + | छूटेउ लाज डगरिया, औ कुल कानि। | ||
| + | करत जात अपरधवा, परि गइ बानि।।104।। | ||
| + | |||
| + | (धृष्टप) | ||
| + | |||
| + | जहवाँ जात रइनियाँ तहवाँ जाहु। | ||
| + | जोरि नयन निरलजवा, कत मुसुकाहु।।105।। | ||
| + | |||
| + | (उपपति) | ||
| + | |||
| + | झाँकि झरोखन गोरिया, अँखियन जोर। | ||
| + | फिरि चितवन चित मितवा, करत निहोर।।106।। | ||
| + | |||
| + | (वचन-चतुर) | ||
| + | |||
| + | सघन कुंज अमरैया, सीतल छाँह। | ||
| + | झगरत आय कोइलिया, पुनि उड़ि जाह।।107।। | ||
| + | |||
| + | (क्रिया-चतुर) | ||
| + | |||
| + | खेलत जानेसि टोलवा, नंदकिसोर। | ||
| + | हुइ वृषभानु कुँअरिया, होगा चोर।।108।। | ||
| + | |||
| + | (वैशिक) | ||
| + | |||
| + | जनु अति नील अलकिया बनसी लाय। | ||
| + | भो मन बारबधुअवा, तीय बझाय।।109।। | ||
| + | |||
| + | (प्रोषित नायक) | ||
| + | |||
| + | करबौं ऊँच अटरिया, तिय सँग केलि। | ||
| + | कबधौं, पहिरि गजरवा, हार चमेलि।।110।। | ||
| + | |||
| + | (मानी) | ||
| + | |||
| + | अब भरि जनम सहेलिया, तकब न ओहि। | ||
| + | ऐंठलि गइ अभिमनिया, तजि कै मोहि।।111।। | ||
| + | |||
| + | (स्वप्न,दर्शन) | ||
| + | |||
| + | पीतम मिलेउ सपनवाँ भइ सुख-खानि। | ||
| + | आनि जगाएसि चेरिया, भइ दुखदानि।।112।। | ||
| + | |||
| + | (चित्र दर्शन) | ||
| + | |||
| + | पिय मूरति चितसरिया, चितवन बाल। | ||
| + | सुमिरत अवधि बसरवा, जपि जपि माल।।113।। | ||
| + | |||
| + | (श्रवण) | ||
| + | |||
| + | आयेउ मीत बिदेसिया, सुन सखि तोर। | ||
| + | उठि किन करसि सिंगरवा, सुनि सिख मोर।।114।। | ||
| + | |||
| + | (साक्षात दर्शन) | ||
| + | |||
| + | बिरहिनि अवर बिदेसिया, भै इक ठोर। | ||
| + | पिय-मुख तकत तिरियवा, चंद चकोर।।115।। | ||
| + | |||
| + | (मंडन) | ||
| + | |||
| + | सखियन कीन्ह सिंगरवा रचि बहु भाँति। | ||
| + | हेरति नैन अरसिया, मुरि मुसुकाति।।116।। | ||
| + | |||
| + | (शिक्षा) | ||
| + | |||
| + | छाकहु बैठ दुअरिया मीजहु पाय। | ||
| + | पिय तन पेखि गरमिया, बिजन डोलाय।।117।। | ||
| + | |||
| + | (उपालंभ) | ||
| + | |||
| + | चुप होइ रहेउ सँदेसवा, सुनि मुसुकाय। | ||
| + | पिय निज कर बिछवनवा, दीन्हम उठाय।।118।। | ||
| + | |||
| + | (परिहास) | ||
| + | |||
| + | बिहँसति भौहँ चढ़ाये, धुनष मनीय। | ||
| + | लावत उर अबलनिया, उठि उठि पीय।।119।। | ||
| + | |||
| + | 1. | ||
| + | |||
| + | भोरहिं बोलि कोइलिया बढ़वति ताप। | ||
| + | घरी एक भरि अलिया रहु चुपचाप | ||
| + | बाहर लैकै दियवा बारन जाइ। | ||
| + | सासु ननद घर पहुँचत देति बुझाइ | ||
| + | पिय आवत अंगनैया उठिकै लीन। | ||
| + | बिहँसत चतुर तिरियवा बैठक दीन | ||
| + | लै कै सुघर खुरपिया पिय के साथ। | ||
| + | छइबै एक छतरिया बरसत पाथ | ||
| + | पीतम इक सुमरिनियाँ मोहिं देइ जाहु। | ||
| + | जेहि जपि तोर बिरहवा करब निबाहु | ||
| + | </poem> | ||
08:28, 15 मई 2014 के समय का अवतरण
(दोहा)
कवित कह्यो दोहा कह्यो, तुलै न छप्य्।।क छंद।
बिरच्या् यहै विचार कै, यह बरवैरस कंद।।1।।
(मंगलाचरण)
बंदौ देवि सरदवा, पद कर जोरि।
बरनत काव्यस बरैवा, लगै न खोरि।।2।।
(उत्त्मा)
लखि अपराध पियरवा, नहिं रिस कीन।
बिहँसत चनन चउकिया, बैठक दीन।।3।।
(मध्यनमा)
बिनुगुन पिय-उर हरवा, उपट्यो हेरि।
चुप ह्वै चित्र पुतरिया, रहि मुख फेरि।।4।।
(अधमा)
बेरिहि बेर गुमनवा, जनि करु नारि।
मानिक औ गजमुकुता, जौ लगि बारि।।5।।
(स्व कीया)
रहत नयन के कोरवा, चितवनि छाय।
चलत न पग-पैजनियॉं, मग अहटाय।।6।।
(मुग्धाम)
लहरत लहर लहरिया, लहर बहार।
मोतिन जरी किनरिया, बिथुरे बार।।7।।
लागे आन नवेलियहि, मनसिज बान।
उसकन लाग उरोजवा दृग तिरछान।।8।।
(अज्ञातयौवना)
कवन रोग दुहुँ छतिया, उपजे आय।
दुखि दुखि उठै करेजवा, लगि जनु जाय।।9।।
(ज्ञातयौवना)
औचक आइ जोबनवाँ, मोहि दुख दीन।
छुटिगो संग गोइअवॉं नहि भल कीन।।10।।
(नवोढ़ा)
पहिरति चूनि चुनरिया, भूषन भाव।
नैननि देत कजरवा, फूलनि चाव।।11।।
(विश्रब्धर नवोढ़ा)
जंघन जोरत गोरिया, करत कठोर।
छुअन न पावै पियवा, कहुँ कुच-कोर।।12।।
(मध्यतमा)
ढीलि आँख जल अँचवत, तरुनि सुभाय।
धरि खसिकाइ घइलना, मुरि मुसुकाय।।13।।
(प्रौढ़ रतिप्रीता)
भोरहि बोलि कोइलिया, बढ़वति ताप।
घरी एक घरि अलवा, रह चुपचाप।।14।।
(परकीया)
सुनि सुनि कान मुरलिया, रागन भेद।
गैल न छाँड़त गोरिया, गनत न खेद।।15।।
(ऊढ़ा)
निसु दिन सासु ननदिया, मुहि घर हेर।
सुनन न देत मुरलिया मधुरी टेर।।161।
(अनूढ़ा)
मोहि बर जोग कन्हैाया लागौं पाय।
तुहु कुल पूज देवतवा, होहु सहाय।।17।।
(भूत सुरति-संगोपना)
चूनत फूल गुलबवा डार कटील।
टुटिगा बंद अँगियवा, फटि पट नील।।18।।
आयेसि कवनेउ ओरवा, सुगना सार।
परिगा दाग अधरवा, चोंच चोटार।।19।।
(वर्तमान सुरति-गोपना)
मं पठयेउ जिहि मकवॉं, आयेस साध।
छुटिगा सीस को जुरवा, कसि के बाँध।।20।।
मुहि तुहि हरबर आवत, भा पथ खेद।
रहि रहि लेत उससवा, बहत प्रसेद।।21।।
(भविष्यत सुरति-गोपनान)
होइ कत आइ बदरिया, बरखहि पाथ।
जैहौं घन अमरैया, सुगना साथ।।22।।
जैहौं चुनन कुसुमियॉं, खेत बडिे दूर।
नौआ केर छोहरिया, मुहि सँग कूर।।23।।
(क्रिया-विदग्धान)
बाहिर लैके दियवा, बारन जाय।
सासु ननद ढिग पहुँचत, देत बुझाय।।24।।
(वचन-विदग्धाग)
तनिक सी नाक नथुनिया, मित हित नीक।
कहिति नाक पहिरावहु, चित दै सींक।।25।।
(लक्षिता)
आजु नैन के कजरा, औरे भाँत।
नागर नहे नवेलिया, सुदिने जात।।26।।
(अन्य -सुरति-दु:खिता)
बालम अस मन मिलियउँ, जस पय पानि।
हँसिनि भइल सवतिया, लइ बिलगानि।।27।।
(संभोग-दु:खिता)
मैं पठयउ जिहि कमवाँ, आयसि साध।
छुटिगो सीस को जुरवा, कसि के बाँधि।।28।।
मुहि तुहि हरबत आवत, भव पथ खेद।
रहि रहि लेत उससवा, बहत प्रसेद।।29।।
(प्रेम-गर्विता)
आपुहि देत जवकवा, गूँदत हार।
चुनि पहिराव चुनरिया, प्रानअधार।।30।।
अवरन पाय जवकवा, नाइन दीन।
मुहि पग आगर गोरिया, आनन कीन।।31।।
(रूप-गर्विता)
खीन मलिन बिखभैया, औगुन तीन।
मोहिं कहत विधुबदनी, पिय मतिहीन।।32।।
दातुल भयसि सुगरुवा, निरस पखान।
यह मधु भरल अधरवा, करसि गुमान।।33।।
(प्रथम अनुशयना, भावी-संकेतनष्टार)
धीरज धरु किन गोरिया करि अनुराग।
जात जहाँ पिय देसवा, घन बन बाग।। 34।।
जनि मरु रोय दुलहिया, कर मन ऊन।
सघन कुंज ससुररिया, औ घर सून।।35।।
(द्वितीय अनुशयना, संकेत-विघट्टना)
जमुना तीर तरुनिअहि लखि भो सूल।
झरिगो रूख बेइलिया, फुलत न फूल।।36।।
ग्रीषम दवत दवरिया, कुंज कुटीर।
तिमि तिमि तकत तरुनिअहिं, बाढ़ी पीर।।37।।
(तृतीय अनुशयना, रमणगमना)
मितवा करत बँसुरिया, सुमन सपात।
फिरि फिरि तकत तरुनिया, मन पछतात।।38।।
मित उत तें फिरि आयेउ, देखु न राम।
मैं न गई अमरैया, लहेउ न काम।।39।।
(मुदिता)
नेवते गइल ननदिया, मैके सासु।
दुलहिनि तोरि खबारिया,आवै आँसु।।40।।
जैहौं काल नेवतवा, भा दु:ख दून।
गॉंव करेसि रखवरिया, सब घर सून।।41।।
(कुलटा)
जस मद मातल हथिया, हुमकत जात।
चितवत जात तरुनिया, मन मुसकात।।42।।
चितवत ऊँच अटरिया, दहिने बाम।
लाखन लखत विछियवा, लखी सकाम।।43।।
(सामान्या गणिका)
लखि लखि धनिक नयकवा बनवत भेष।
रहि गइ हेरि अरसिया कजरा रेख।।44।।
(मुग्धाि प्रोषितपतिका)
कासो कहौ सँदेसवा, पिय परदेसु।
लागेहु चइत न फले तेहि बन टेसु।।45।।
(मध्यात प्रोषितपतिका)
का तुम जुगुल तिरियवा, झगरति आय।
पिय बिन मनहुँ अटरिया, मुहि न सुहाय।।46।।
(प्रौढ़ा प्रोषितपतिका)
तैं अब जासि बेइलिया, बरु जरि मूल।
बिनु पिय सूल करेजवा, लखि तुअ फूल।।47।।
या झर में घर घर में, मदन हिलोर।
पिय नहिं अपने कर में, करमै खोर।।48।।
(मुग्धाप खंडिता)
सखि सिख मान नवेलिया, कीन्हेोसि मान।
पिय बिन कोपभवनवा, ठानेसि ठान।।49।।
सीस नवायँ नवेलिया, निचवइ जोय।
छिति खबि, छोर छिगुरिया, सुसुकति रोय।।50।।
गिरि गइ पीय पगरिया, आलस पाइ।
पवढ़हु जाइ बरोठवा, सेज डसाइ।।51।।
पोछहु अधर कजरवा, जावक भाल।
उपजेउ पीतम छतिया, बिनु गुन माल।।52।।
(प्रौढ़ा खंडिता)
पिय आवत अँगनैया, उठि कै लीन।
साथे चतुर तिरियवा, बैठक दीन।।53।।
पवढ़हु पीय पलँगिया, मींजहुँ पाय।
रैनि जगे कर निंदिया, सब मिटि जाय।।54।।
(परकीया खंडिता)
जेहि लगि सजन सनेहिया, छुटि घर बार।
आपन हित परिवरवा, सोच परार।।55।।
(गणिका खंडिता)
मितवा ओठ कजरवा, जावक भाल।
लियेसि काढ़ि बइरिनिया, तकि मनिमाल।।56।।
(मुग्धाज कलहांतरिता)
आयेहु अबहिं गवनवा, जुरुते मान।
अब रस लागिहि गोरिअहि, मन पछतान।।57।।
(मग्धाि कलहांतरिता)
मैं मतिमंद तिरियवा, परिलिउँ भोर।
तेहि नहिं कंत मनउलेउँ, तेहि कछु खोर।।58।।
(प्रौढ़ा कलहांतरिता)
थकि गा करि मनुहरिया, फिरि गा पीय।
मैं उठि तुरति न लायेउँ, हिमकर हीय।।59।।
(परकीया कलहांतरिता)
जेहि लगि कीन बिरोधवा, ननद जिठानि।
रखिउँ न लाइ करेजवा, तेहि हित जानि।।60।।
(गणिका कलहांतरिता)
जिहि दीन्हेलउ बहु बिरिया, मुहि मनिमाल।
तिहि ते रूठेउँ सखिया, फिरि गे लाल।।61।।
(मुग्धाठ विप्रलब्धाा)
लखे न कंत सहेटवा, फिरि दुबराय।
धनिया कमलबदनिया, गइ कुम्हिलाय।।62।।
(मध्याब विप्रलब्धाइ)
देखि न केलि-भवनवा, नंदकुमार।
लै लै ऊँच उससवा, भइ बिकरार।।63।।
(प्रौढ़ा विप्रलब्धान)
देखि न कंत सहेटवा, भा दुख पूर।
भौ तन नैन कजरवा, होय गा झूर।।64।।
(परकीया विप्रलब्धा )
बैरिन भा अभिसरवा, अति दुख दानि।
प्रातउ मिलेउ न मितवा, भइ पछितानि।।65।।
(गणिका विप्रलब्धात)
करिकै सोरह सिंगरवा, अतर लगाइ।
मिलेउ न लाल सहेटवा, फिरि पछिताई।।66।।
(मुग्धाल उत्कं,ठिता)
भा जुग जाम जमिनिया, पिय नहिं जाय।
राखेउ कवन सवतिया, रहि बिलमाय।।67।।
(मध्या उत्कं,ठिता)
जोहत तीय अँगनवा, पिय की बाट।
बेचेउ चतुर तिरियवा, केहि के हाट।।68।।
(प्रौढ़ा उत्कंाठिता)
पिय पथ हेरत गोरिया, भा भिनसार।
चलहु न करिहि तिरियवा, तुअ इतबार।।69।।
(परकीया उत्कंिठिता)
उठि उठि जात खिरिकिया, जोहत बाट।
कतहुँ न आवत मितवा, सुनि सुनि खाट।।70।।
(गणिका उत्कंवठिता)
कठिन नींद भिनुसरवा, आलस पाइ।
धन दै मूरख मितवा, रहल लोभाइ।।71।।
(मुग्धा वासकसज्जार)
हरुए गवन नबेलिया, दीठि बचाइ।
पौढ़ी जाइ पलँगिया, सेज बिछाइ।।72।।
(मध्या वासकसज्जास)
सुभग बिछाई पलँगिया, अंग सिंगार।
चितवत चौंकि तरुनिया, दै दृ्ग द्वार।।73।।
(प्रौढ़ा वासकसज्जास)
हँसि हँसि हेरि अरसिया, सहज सिंगार।
उतरत चढ़त नवेलिया, तिय कै बार।।74।।
(परकीया वासकसज्जा,)
सोवत सब गुरू लोगवा, जानेउ बाल।
दीन्हेबसि खोलि खिरकिया, उठि कै हाल।।75।।
(सामान्याह वासकसज्जा,)
कीन्हेमसि सबै सिंगरवा, चातुर बाल।
ऐहै प्रानपिअरवा, लै मनिमाल।।76।।
(मुग्धाय स्वांधीनपतिका)
आपुहि देत जवकवा, गहि गहि पाय।
आपु देत मोहि पियवा, पान खवाय।।77।।
(मध्याो स्वांधीनपतिका)
प्रीतम करत पियरवा, कहल न जात।
रहत गढ़ावत सोनवा, इहै सिरात।।78।।
(प्रौढ़ा स्वााधीनपतिका)
मैं अरु मोर पियरवा, जस जल मीन।
बिछुरत तजत परनवा, रहत अधीन।।79।।
(परकीया स्वााधीनपतिका)
भो जुग नैन चकोरवा, पिय मुख चंद।
जानत है तिय अपुनै, मोहि सुखकंद।।80।।
(सामान्याअ स्वािधीनपतिका)
लै हीरन के हरवा, मानिकमाल।
मोहि रहत पहिरावत, बस ह्वै लाल।।81।।
(मुग्धाह अभिसारिका)
चलीं लिवाइ नवेलिअहि, सखि सब संग।
जस हुलसत गा गोदवा, मत्तस मतंग।।82।।
(मध्याग अभिसारिका)
पहिरे लाल अछुअवा, तिय-गज पाय।
चढ़े नेह-हथिअवहा, हुलसत जाय।।83।।
(प्रौढ़ा अभिसारिका)
चली रैनि अँधिअरिया, साहस गाढि।
पायन केर कँगनिया, डारेसि काढि।।84।।
(परकीया क(ष्णा,भिसारिका)
नील मनिन के हरवा, नील सिंगार।
किए रैनि अँधिअरिया, धनि अभिसार।।85।।
(शुक्लाँभिसारिका)
सेत कुसुम कै हरवा भूषन सेत।
चली रैनि उँजिअरिया, पिय के हेत।।86।।
(दिवाभिसारिका)
पहिरि बसन जरतरिया, पिय के होत।
चली जेठ दुपहरिया, मिलि रवि जोत।।87।।
(गणिका अभिसारिका)
धन हित कीन्हि सिंगरवा, चातुर बाल।
चली संग लै चेरिया, जहवाँ लाल।।88।।
(मुग्धा प्रवत्य्व त्पतिका)
परिगा कानन सखिया पिय कै गौन।
बैठी कनक पलँगिया, ह्वै कै मौन।।89।।
(मध्याप प्रवत्य्व त्पतिका)
सुठि सुकुमार तरुयिका, सुनि पिय-गौन।
लाजनि पौढि ओबरिया, ह्वै कै मौन।।90।।
(प्रौढ़ा प्रवत्य्बरित्पतिका)
बन धन फूलहि टेसुआ, बगिअनि बेलि।
चलेउ बिदेस पियरवा फगुआ खेलि।।91।।
(परकीया प्रवत्य्ग त्पतिका)
मितवा चलेउ बिदेसवा मन अनुरागि।
पिय की सुरत गगरिया, रहि मग लागि।।92।।
(गणिका प्रवत्य् म त्पतिका)
पीतम इक सुमिरिनिया, मुहि देइ जाहु।
जेहि जप तोर बिरहवा, करब निबाहु।।93।।
(गुग्धार आगतपतिका)
बहुत दिवस पर पियवा, आयेउ आज।
पुलकित नवल दुलहिवा, कर गृह-काज।।94।।
(मध्याल आगतपतिका)
पियवा आय दुअरवा, उठि किन देख।
दुरलभ पाय बिदेसिया,मुद अवरेख।।95।।
(प्रौढ़ा आगतपतिका)
आवत सुनत तिरियवा, उठि हरषाइ।
तलफत मनहुँ मछरिया, जनु जल पाइ।।96।।
(परकीया आगतपतिका)
पूछन चली खबरिया, मितवा तीर।
हरखित अतिहि तिरियवा पहिरत चीर।।97।।
(गणिका आगतपतिका)
तौ लगि मिटिहि न मितवा, तन की पीर।
जौ लगि पहिर न हरवा, जटित सुहीर।।98।।
(नायक)
सुंदर चतुर धनिकवा, जाति के ऊँच।
केलि-कला परबिनवा, सील समूच।।99।।
(नायक भेद)
पति, उपपति, वैसिकवा, त्रिबिध बखान।
(पति लक्षण)
बिधि सो ब्याणह्यो गुरु जन पति सो जानि।।100।।
(पति)
लैकै सुघर खुरुपिया, पिय के साथ।
छइवै एक छतरिया, बरखत पाथ।।101।।
(अनुकूल)
करत न हिय अपरधवा, सपनेहुँ पीय।
मान करन की बेरिया, रहि गइ हीय।।102।।
(दक्षिण)
सौतिन करहि निहोरवा, हम कहँ देहु।
चुन चु चंपक चुरिया, उच से लेहु।।103।।
(शठ)
छूटेउ लाज डगरिया, औ कुल कानि।
करत जात अपरधवा, परि गइ बानि।।104।।
(धृष्टप)
जहवाँ जात रइनियाँ तहवाँ जाहु।
जोरि नयन निरलजवा, कत मुसुकाहु।।105।।
(उपपति)
झाँकि झरोखन गोरिया, अँखियन जोर।
फिरि चितवन चित मितवा, करत निहोर।।106।।
(वचन-चतुर)
सघन कुंज अमरैया, सीतल छाँह।
झगरत आय कोइलिया, पुनि उड़ि जाह।।107।।
(क्रिया-चतुर)
खेलत जानेसि टोलवा, नंदकिसोर।
हुइ वृषभानु कुँअरिया, होगा चोर।।108।।
(वैशिक)
जनु अति नील अलकिया बनसी लाय।
भो मन बारबधुअवा, तीय बझाय।।109।।
(प्रोषित नायक)
करबौं ऊँच अटरिया, तिय सँग केलि।
कबधौं, पहिरि गजरवा, हार चमेलि।।110।।
(मानी)
अब भरि जनम सहेलिया, तकब न ओहि।
ऐंठलि गइ अभिमनिया, तजि कै मोहि।।111।।
(स्वप्न,दर्शन)
पीतम मिलेउ सपनवाँ भइ सुख-खानि।
आनि जगाएसि चेरिया, भइ दुखदानि।।112।।
(चित्र दर्शन)
पिय मूरति चितसरिया, चितवन बाल।
सुमिरत अवधि बसरवा, जपि जपि माल।।113।।
(श्रवण)
आयेउ मीत बिदेसिया, सुन सखि तोर।
उठि किन करसि सिंगरवा, सुनि सिख मोर।।114।।
(साक्षात दर्शन)
बिरहिनि अवर बिदेसिया, भै इक ठोर।
पिय-मुख तकत तिरियवा, चंद चकोर।।115।।
(मंडन)
सखियन कीन्ह सिंगरवा रचि बहु भाँति।
हेरति नैन अरसिया, मुरि मुसुकाति।।116।।
(शिक्षा)
छाकहु बैठ दुअरिया मीजहु पाय।
पिय तन पेखि गरमिया, बिजन डोलाय।।117।।
(उपालंभ)
चुप होइ रहेउ सँदेसवा, सुनि मुसुकाय।
पिय निज कर बिछवनवा, दीन्हम उठाय।।118।।
(परिहास)
बिहँसति भौहँ चढ़ाये, धुनष मनीय।
लावत उर अबलनिया, उठि उठि पीय।।119।।
1.
भोरहिं बोलि कोइलिया बढ़वति ताप।
घरी एक भरि अलिया रहु चुपचाप
बाहर लैकै दियवा बारन जाइ।
सासु ननद घर पहुँचत देति बुझाइ
पिय आवत अंगनैया उठिकै लीन।
बिहँसत चतुर तिरियवा बैठक दीन
लै कै सुघर खुरपिया पिय के साथ।
छइबै एक छतरिया बरसत पाथ
पीतम इक सुमरिनियाँ मोहिं देइ जाहु।
जेहि जपि तोर बिरहवा करब निबाहु
