भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"इस बारिश में / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश सक्सेना |संग्रह=सुनो चारुशी...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | जिसके पास चली | + | जिसके पास चली गई मेरी ज़मीन |
उसी के पास अब मेरी | उसी के पास अब मेरी | ||
− | बारिश भी चली | + | बारिश भी चली गई |
− | अब जो घिरती हैं काली | + | अब जो घिरती हैं काली घटाएँ |
उसी के लिए घिरती है | उसी के लिए घिरती है | ||
कूकती हैं कोयलें उसी के लिए | कूकती हैं कोयलें उसी के लिए | ||
उसी के लिए उठती है | उसी के लिए उठती है | ||
− | धरती के सीने से सोंधी | + | धरती के सीने से सोंधी सुगन्ध |
अब नहीं मेरे लिए | अब नहीं मेरे लिए | ||
पंक्ति 21: | पंक्ति 21: | ||
एक हरी बूँद नहीं | एक हरी बूँद नहीं | ||
तोते नहीं, ताल नहीं, नदी नहीं, आर्द्रा नक्षत्र नहीं, | तोते नहीं, ताल नहीं, नदी नहीं, आर्द्रा नक्षत्र नहीं, | ||
− | कजरी | + | कजरी मल्हार नहीं मेरे लिए |
− | जिसकी नहीं कोई | + | जिसकी नहीं कोई ज़ामीन |
− | उसका नहीं कोई | + | उसका नहीं कोई आसमान । |
</poem> | </poem> |
15:50, 24 फ़रवरी 2021 के समय का अवतरण
जिसके पास चली गई मेरी ज़मीन
उसी के पास अब मेरी
बारिश भी चली गई
अब जो घिरती हैं काली घटाएँ
उसी के लिए घिरती है
कूकती हैं कोयलें उसी के लिए
उसी के लिए उठती है
धरती के सीने से सोंधी सुगन्ध
अब नहीं मेरे लिए
हल नही बैल नही
खेतों की गैल नहीं
एक हरी बूँद नहीं
तोते नहीं, ताल नहीं, नदी नहीं, आर्द्रा नक्षत्र नहीं,
कजरी मल्हार नहीं मेरे लिए
जिसकी नहीं कोई ज़ामीन
उसका नहीं कोई आसमान ।