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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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<div style="font-size:15px;"> योगदानकर्ता:[[मृदुल कीर्ति| मृदुल कीर्ति]] </div>
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दो शरीर
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परस्पर सलग
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परस्पर विलग
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आत्मीय आदान-प्रदान का सेतु बंध,
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था ही नहीं ।
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आकर्षण विकर्षण का प्रतिबिम्ब ,
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था ही नहीं ।
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परस्पर प्रति,सहज समर्पण, स्नेहानुबंध
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था ही नहीं ।
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नितांत असम्पृक्त एकाकी होकर भी ।
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हम निरंतर इस तरह साथ हैं,
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जैसे धरती पर छाया आकाश ,
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विराट नदी के दो अदृश्य किनारे,
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परस्पर सलग ,
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परस्पर विलग ।
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
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सबमें अपनेपन की माया
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अपने पन में जीवन आया
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया