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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!</div>
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<div style="font-size:15px;"> कवि:[[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"| सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]] </div>
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बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
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पूछेगा सारा गाँव, बंधु!
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यह घाट वही जिस पर हँसकर,
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<div style="text-align: center;">
वह कभी नहाती थी धँसकर,
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
आँखें रह जाती थीं फँसकर,
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कँपते थे दोनों पाँव बंधु!
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वह हँसी बहुत कुछ कहती थी,
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
फिर भी अपने में रहती थी,
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
सबकी सुनती थी, सहती थी,
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अपरिचित पास आओ
देती थी सबके दाँव, बंधु!
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</pre></center></div>
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
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सबमें अपनेपन की माया
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अपने पन में जीवन आया
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया