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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
<td rowspan=2>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">चीरहरण करती है दिल्ली</div>
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<div style="font-size:15px;"> कवि:[[जयकृष्ण राय तुषार| जयकृष्ण राय तुषार]] </div>
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</td>
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</tr>
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</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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यमुना में
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गर चुल्लू भर
+
पानी हो दिल्ली डूब मरो ।
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स्याह ... चाँदनी चौक हो गया
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नादिरशाहो तनिक डरो ।
+
  
नहीं राजधानी के
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<div style="text-align: center;">
लायक
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
चीरहरण करती है दिल्ली,
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</div>
भारत माँ
+
की छवि दुनिया में
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शर्मसार करती है दिल्ली,
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संविधान की
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क़समें
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खाने वालो, कुछ तो अब सुधरो ।
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तालिबान में,
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
तुझमें क्या है
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
फ़र्क सोचकर हमें बताओ,
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अपरिचित पास आओ
जो भी
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गुनहगार हैं उनको
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फाँसी के तख़्ते तक लाओ,
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दुनिया को
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क्या मुँह
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दिखलाओगे नामर्दो शर्म करो ।
+
  
क्राँति करो
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
अब अत्याचारी
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
महलों की दीवार ढहा दो,
+
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
कठपुतली
+
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
परधान देश का
+
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
उसको मौला राह दिखा दो,
+
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
भ्रष्टाचारी
+
हाक़िम दिन भर
+
गाल बजाते उन्हें धरो ।
+
  
गोरख पांडेय का
+
सबमें अपनेपन की माया
अनुयायी
+
अपने पन में जीवन आया
चुप क्यों है मजनू का टीला,
+
</div>
आसमान की  
+
</div></div>
झुकी निगाहें
+
हुआ शर्म से चेहरा पीला,
+
इस समाज
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का चेहरा बदलो
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नुक्कड़ नाटक बन्द करो ।
+
 
+
गद्दी का
+
गुनाह है इतना
+
उस पर बैठी बूढी अम्मा,
+
दु:शासन हो
+
गया प्रशासन
+
पुलिस-तन्त्र हो गया निकम्मा ,
+
कुर्सी
+
बची रहेगी केवल
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इटली का गुणगान करो ।
+
</pre></center></div>
+

19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया