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<div style="font-size:120%; color:#a00000">
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<div style="background:#eee; padding:10px">
ख़ानाबदोश औरत
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<div style="background: transparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px">
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रचनाकार: [[किरण अग्रवाल]]
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<div style="text-align:left;overflow:auto;height:450px;border:none;"><poem>
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
ख़ानाबदोश औरत
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
अपनी काली, गहरी पलकों से
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ताकती है क्षितिज के उस पार
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सपना जिसकी आँखों में डूबकर
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<div style="text-align: center;">
ख़ानाबदोश हो जाता है
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
उसकी ही तरह
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समय
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जो लम्बे-लम्बे डग भरता
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नापता है ब्रह्मांड को
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समय
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
जिसकी नाक के नथुनों से
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
निकलता रहता है धुआँ
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अपरिचित पास आओ
जिसके पाँवों की थाप से
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थर्राती है धरती
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दिन
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
जिसके लौंग-कोट के बटन में उलझकर
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
भूल जाता है अक्सर रास्ता
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
औरत उसके दिल की धडकन है
+
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
रूक जाए
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
तो रूक जाएगा समय
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
और इसलिए टिककर नहीं ठहरती कहीं
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सबमें अपनेपन की माया
चलती रहती है निरन्तर ख़ानाबदोश औरत
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अपने पन में जीवन आया
अपने काफ़िले के साथ
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</div>
पडाव-दर-पडाव
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</div></div>
 
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बेटी — पत्नी — माँ....
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वह खोदती है कोयला
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वह चीरती है लकडी
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वह काटती है पहाड
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वह थापती है गोयठा
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वह बनाती है रोटी
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वह बनाती है घर
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लेकिन उसका कोई घर नहीं होता
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ख़ानाबदोश औरत
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आसमान की ओर देखती है तो कल्पना चावला बनती है
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धरती की ओर ताके तो मदर टेरेसा
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हुँकार भरती है तो होती है वह झाँसी की रानी
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पैरों को झनकाए तो ईजाडोरा
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ख़ानाबदोश औरत
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विज्ञान को खगालती है तो
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जनमती है मैडम क्यूरी
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क़लम हाथ में लेती है तो महाश्वेता
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प्रेम में होती है वह क्लियोपैट्रा और उर्वशी
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भक्ति में अनुसुइय्या और मीरां
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वह जन्म देती है पुरूष को
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पुरूष जो उसका भाग्य-विधाता बन बैठता है
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पुरूष जो उसको अपने इशारे पर हाँकता है
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फिर भी बिना हिम्मत हारे बढ़ती रहती है आगे
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ख़ानाबदोश औरत
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क्योंकि वह समय के दिल की धडकन है
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अगर वह रूक जाए
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तो रूक जाएगी सृष्टि
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया