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"सत्ताईस हाइकु / गोपालदास "नीरज"" के अवतरणों में अंतर

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मैंने तो की है
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उनसे यारी सदा
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अनजाने हैं वे
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खड़े-खड़े दूर से
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देखें जो मेले
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मन है कामी
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कामी बने आकामी
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दास हो स्वामी
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सृष्टि का खेल
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आकाश पर चढ़ी
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उल्टी बेल
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दुःख औ सुख
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जन्म मरण दोनों
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हैं यात्रा क्रम
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पंचम से हैं
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सप्तम तक जैसे
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सुर संगम
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गरीबी है ये
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अमीरी षड्यन्त्र
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और ये तन्त्र
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सेवा का कर्म
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सबसे बड़ा यहाँ
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मानव-धर्म
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गुनिये कुछ
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सुनिए या पढ़िये
 +
फिर लिखिए
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 +
27.
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चलने की है
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कल को मेरी बारी
 +
करी तैयारी

14:01, 30 जनवरी 2013 के समय का अवतरण

1.
ओस की बूंद
फूल पर सोई जो
धूल में मिली

2.
वो हैं अपने
जैसे देखे हैं मैंने
कुछ सपने

3.
किसको मिला
वफा का दुनिया में
वफा हीं सिला

4.
तरना है जो
भव सागर यार
कर भ्रष्टाचार

5.
क्यों शरमाए
तेरा ये बांकपन
सबको भाए

6.
राजनीती है
इन दिनों उद्योग
इसको भोग

7.
सोने की कली
मिटटी भरे जग में
किसको मिली

8.
मन-मनका
पूजा के समय ही
कहीं अटका

9.
घट-मटका
रास्ता न जाने कोई
पनघट का

10.
ओ मेरे मीत
गा रे हरपल तू
प्रेम के गीत

11.
कल के फूल
मांग रहे हैं भीख
छोड़ स्कूल

12.
कैसे हो न्याय
बछड़े को चाटे जब
खुद ही गाय

13.
जीवन का ये
अरुणाभ कमल
नेत्रों का छल

14.
जीना है तो
नहीं होना निराश
रख विश्वास

15.
बिखरी जब
रचना बनी एक
नवल सृष्टि

16.
सिमटी जब
रचना बनी वही
सृष्टि से व्यष्टि

17.
मैंने तो की है
उनसे यारी सदा
जो हैं अकेले

18.
अनजाने हैं वे
खड़े-खड़े दूर से
देखें जो मेले

19.
मन है कामी
कामी बने आकामी
दास हो स्वामी

20.
सृष्टि का खेल
आकाश पर चढ़ी
उल्टी बेल

21.
दुःख औ सुख
जन्म मरण दोनों
हैं यात्रा क्रम

22.
पंचम से हैं
सप्तम तक जैसे
सुर संगम

24.
गरीबी है ये
अमीरी षड्यन्त्र
और ये तन्त्र

25.
सेवा का कर्म
सबसे बड़ा यहाँ
मानव-धर्म

26.
गुनिये कुछ
सुनिए या पढ़िये
फिर लिखिए

27.
चलने की है
कल को मेरी बारी
करी तैयारी