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"धुँआ (36) / हरबिन्दर सिंह गिल" के अवतरणों में अंतर

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इस धुएँ का सबसे बड़ा कारण
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यह धुँआ बड़ा विचित्र है
यह है कि  मानवता का हृदय
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जिसमें कई रंग भरे हैं
समाज में छिन्न-भिन्न हुआ पड़ा है
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इन्हे नाम दूँ, इन्द्र धनुष का
और सब लिए फिरते हे इन टुकड़ों को
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या कहूँ, है रंग गिरगिट का
और उससे भी विचित्र
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कोई पहचान नहीं रह गई इन टुकड़ों की
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किसी को महसूस नहीं हुआ
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इस धुएँ के जन्म का कारण
कि ये रो रहे हैं
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मानव की धर्म के पीछे अंधी दौड़ है
‘‘हम टुकड़े नहीं वस्तु के  
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परंतु भगवान ने धर्म
हम टुकडे़ हैं दिल के
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इसलिए, नहीं बनाया कि मनुष्य बनाऊँ
दिल जो किसी मां का है
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और उसे जगह दूँ स्वर्ग या नरक में
मां जिसने सभी धर्मों को जन्म दिया
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जोड़ो इनको, जो जोड़ सको
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यदि ऐसा होता वो खुद ही
इससे पहले कि धड़कते टुकड़े
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दो दुनिया बना देता, परंतु नहीं किया
कहीं धड़कना न बंद कर दें ।
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उसने धर्म बनाया, मानवता के लिए
 
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पूजास्थल बनाये, उसने पूजन के लिए
इन्हीं धड़कनों में
+
और मानव बनाया, ब्रह्मांड को सुगंधित करने के लिए
धड़कते हैं, दिल असंख्य
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न कि दूषित करने के लिए धुएँ से
 
+
महसूस करो धड़कन इन टुकड़ों की
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आवाज सुनो उनके रोने की ।
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वो रो नहीं रहे, रहे हैं भर सिसकियां
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सिसकियां जो दबकर रह गई है
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धर्म के झुठे नारों में ।
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नारे जो हल्ला कर रहे हैं
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जिसमें नहीं कोई राग, विराग का ।
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हो जाओ पूरे वैरागी पाओगे ये टुकड़े
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किसी वस्तु के नहीं, बल्कि मानवता के हैं ।
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यह उतना ही कट्टर सच है
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जितना कोई कट्टर धार्मिक
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इसलिए सच्चा कट्टर धार्मिक वही होगा
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जो इस धुएँ का दुश्मन होगा
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09:19, 8 फ़रवरी 2013 के समय का अवतरण

यह धुँआ बड़ा विचित्र है
जिसमें कई रंग भरे हैं
इन्हे नाम दूँ, इन्द्र धनुष का
या कहूँ, है रंग गिरगिट का ।

इस धुएँ के जन्म का कारण
मानव की धर्म के पीछे अंधी दौड़ है
परंतु भगवान ने धर्म
इसलिए, नहीं बनाया कि मनुष्य बनाऊँ
और उसे जगह दूँ स्वर्ग या नरक में ।

यदि ऐसा होता वो खुद ही
दो दुनिया बना देता, परंतु नहीं किया ।
उसने धर्म बनाया, मानवता के लिए
पूजास्थल बनाये, उसने पूजन के लिए
और मानव बनाया, ब्रह्मांड को सुगंधित करने के लिए
न कि दूषित करने के लिए धुएँ से ।