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"पोल-खोलक यंत्र / अशोक चक्रधर" के अवतरणों में अंतर

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जैसे ही यंत्र को उठाया,
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मस्तक में शूं-शूं की ध्वनि हुई
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कुछ घरघराया।
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झटके से गरदन घुमाई,
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पत्नी को देखा
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अब यंत्र से
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पत्नी की आवाज़ आई-
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मैं तो भर पाई!
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सड़क पर चलने तक का
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तरीक़ा नहीं आता,
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कोई भी मैनर
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या सली़क़ा नहीं आता।
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बीवी साथ है
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यह तक भूल जाते हैं,
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और भिखमंगे नदीदों की तरह
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चीज़ें उठाते हैं।
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....इनसे
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इनसे तो
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वो पूना वाला
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इंजीनियर ही ठीक था,
 +
जीप में बिठा के मुझे शॉपिंग कराता
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इस तरह राह चलते
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ठोकर तो न खाता।
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हमने सोचा-
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यंत्र ख़तरनाक है!
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और ये भी एक इत्तेफ़ाक़ है
 +
कि हमको मिला है,
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और मिलते ही
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पूना वाला गुल खिला है।
  
ठोकर खाकर हमने<br>
+
और भी देखते हैं
जैसे ही यंत्र को उठाया,<br>
+
क्या-क्या गुल खिलते हैं?
मस्तक में शूं-शूं की ध्वनि हुई<br>
+
अब ज़रा यार-दोस्तों से मिलते हैं।
कुछ घरघराया।<br>
+
तो हमने एक दोस्त का
झटके से गरदन घुमाई,<br>
+
दरवाज़ा खटखटाया
पत्नी को देखा<br>
+
द्वार खोला, निकला, मुस्कुराया,
अब यंत्र से<br>
+
दिमाग़ में होने लगी आहट
पत्नी की आवाज़ आई-<br>
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कुछ शूं-शूं
मैं तो भर पाई!<br>
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कुछ घरघराहट।
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+
यंत्र से आवाज़ आई-
तरीक़ा नहीं आता,<br>
+
अकेला ही आया है,
कोई भी मैनर<br>
+
अपनी छप्पनछुरी,
या सली़क़ा नहीं आता।<br>
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गुलबदन को
बीवी साथ है<br>
+
नहीं लाया है।
यह तक भूल जाते हैं,<br>
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प्रकट में बोला-
और भिखमंगे नदीदों की तरह<br>
+
ओहो!
चीज़ें उठाते हैं।<br>
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कमीज़ तो बड़ी फ़ैन्सी है!
....इनसे<br>
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और सब ठीक है?
इनसे तो<br>
+
मतलब, भाभीजी कैसी हैं?
वो पूना वाला<br>
+
हमने कहा-
इंजीनियर ही ठीक था,<br>
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भा...भी....जी
जीप में बिठा के मुझे शॉपिंग कराता<br>
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या छप्पनछुरी गुलबदन?
इस तरह राह चलते<br>
+
वो बोला-
ठोकर तो न खाता।<br>
+
होश की दवा करो श्रीमन्‌
हमने सोचा-<br>
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क्या अण्ट-शण्ट बकते हो,
यंत्र ख़तरनाक है!<br>
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भाभीजी के लिए
और ये भी एक इत्तेफ़ाक़ है<br>
+
कैसे-कैसे शब्दों का
कि हमको मिला है,<br>
+
प्रयोग करते हो?
और मिलते ही<br>
+
हमने सोचा-
पूना वाला गुल खिला है।<br><br>
+
कैसा नट रहा है,
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अपनी सोची हुई बातों से ही
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हट रहा है।
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सो फ़ैसला किया-
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अब से बस सुन लिया करेंगे,
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कोई भी अच्छी या बुरी
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प्रतिक्रिया नहीं करेंगे।
  
और भी देखते हैं<br>
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लेकिन अनुभव हुए नए-नए
क्या-क्या गुल खिलते हैं?<br>
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एक आदर्शवादी दोस्त के घर गए।
अब ज़रा यार-दोस्तों से मिलते हैं।<br>
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स्वयं नहीं निकले
तो हमने एक दोस्त का<br>
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वे आईं,
दरवाज़ा खटखटाया<br>
+
हाथ जोड़कर मुस्कुराईं-
द्वार खोला, निकला, मुस्कुराया,<br>
+
मस्तक में भयंकर पीड़ा थी
दिमाग़ में होने लगी आहट<br>
+
अभी-अभी सोए हैं।
कुछ शूं-शूं<br>
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यंत्र ने बताया-
कुछ घरघराहट।<br>
+
बिल्कुल नहीं सोए हैं
यंत्र से आवाज़ आई-<br>
+
न कहीं पीड़ा हो रही है,
अकेला ही आया है,<br>
+
कुछ अनन्य मित्रों के साथ
अपनी छप्पनछुरी,<br>
+
द्यूत-क्रीड़ा हो रही है।
गुलबदन को<br>
+
अगले दिन कॉलिज में
नहीं लाया है।<br>
+
बी०ए० फ़ाइनल की क्लास में
प्रकट में बोला-<br>
+
एक लड़की बैठी थी
ओहो!<br>
+
खिड़की के पास में।
कमीज़ तो बड़ी फ़ैन्सी है!<br>
+
लग रहा था
और सब ठीक है?<br>
+
हमारा लैक्चर नहीं सुन रही है
मतलब, भाभीजी कैसी हैं?<br>
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अपने मन में
हमने कहा-<br>
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कुछ और-ही-और
भा...भी....जी<br>
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गुन रही है।
या छप्पनछुरी गुलबदन?<br>
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तो यंत्र को ऑन कर
वो बोला-<br>
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हमने जो देखा,
होश की दवा करो श्रीमन्‌<br>
+
खिंच गई हृदय पर
क्या अण्ट-शण्ट बकते हो,<br>
+
हर्ष की रेखा।
भाभीजी के लिए<br>
+
यंत्र से आवाज़ आई-
कैसे-कैसे शब्दों का<br>
+
सरजी यों तो बहुत अच्छे हैं,
प्रयोग करते हो?<br>
+
लंबे और होते तो
हमने सोचा-<br>
+
कितने स्मार्ट होते!
कैसा नट रहा है,<br>
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एक सहपाठी
अपनी सोची हुई बातों से ही<br>
+
जो कॉपी पर उसका
हट रहा है।<br>
+
चित्र बना रहा था,
सो फ़ैसला किया-<br>
+
मन-ही-मन उसके साथ
अब से बस सुन लिया करेंगे,<br>
+
पिकनिक मना रहा था।
कोई भी अच्छी या बुरी<br>
+
हमने सोचा-
प्रतिक्रिया नहीं करेंगे।<br><br>
+
फ़्रायड ने सारी बातें
 +
ठीक ही कही हैं,
 +
कि इंसान की खोपड़ी में
 +
सैक्स के अलावा कुछ नहीं है।
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कुछ बातें तो
 +
इतनी घिनौनी हैं,
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जिन्हें बतलाने में
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भाषाएं बौनी हैं।
  
लेकिन अनुभव हुए नए-नए<br>
+
एक बार होटल में
एक आदर्शवादी दोस्त के घर गए।<br>
+
बेयरा पांच रुपये बीस पैसे
स्वयं नहीं निकले<br>
+
वापस लाया
वे आईं,<br>
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पांच का नोट हमने उठाया,
हाथ जोड़कर मुस्कुराईं-<br>
+
बीस पैसे टिप में डाले
मस्तक में भयंकर पीड़ा थी<br>
+
यंत्र से आवाज़ आई-
अभी-अभी सोए हैं।<br>
+
चले आते हैं
यंत्र ने बताया-<br>
+
मनहूस, कंजड़ कहीं के साले,
बिल्कुल नहीं सोए हैं<br>
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टिप में पूरे आठ आने भी नहीं डाले।
न कहीं पीड़ा हो रही है,<br>
+
हमने सोचा- ग़नीमत है
कुछ अनन्य मित्रों के साथ<br>
+
कुछ महाविशेषण और नहीं निकाले।
द्यूत-क्रीड़ा हो रही है।<br>
+
अगले दिन कॉलिज में<br>
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बी०ए० फ़ाइनल की क्लास में<br>
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एक लड़की बैठी थी<br>
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खिड़की के पास में।<br>
+
लग रहा था<br>
+
हमारा लैक्चर नहीं सुन रही है<br>
+
अपने मन में<br>
+
कुछ और-ही-और<br>
+
गुन रही है।<br>
+
तो यंत्र को ऑन कर<br>
+
हमने जो देखा,<br>
+
खिंच गई हृदय पर<br>
+
हर्ष की रेखा।<br>
+
यंत्र से आवाज़ आई-<br>
+
सरजी यों तो बहुत अच्छे हैं,<br>
+
लंबे और होते तो<br>
+
कितने स्मार्ट होते!<br>
+
एक सहपाठी<br>
+
जो कॉपी पर उसका<br>
+
चित्र बना रहा था,<br>
+
मन-ही-मन उसके साथ<br>
+
पिकनिक मना रहा था।<br>
+
हमने सोचा-<br>
+
फ़्रायड ने सारी बातें<br>
+
ठीक ही कही हैं,<br>
+
कि इंसान की खोपड़ी में<br>
+
सैक्स के अलावा कुछ नहीं है।<br>
+
कुछ बातें तो<br>
+
इतनी घिनौनी हैं,<br>
+
जिन्हें बतलाने में<br>
+
भाषाएं बौनी हैं।<br><br>
+
  
एक बार होटल में<br>
+
ख़ैर साहब!
बेयरा पांच रुपये बीस पैसे<br>
+
इस यंत्र ने बड़े-बड़े गुल खिलाए हैं
वापस लाया<br>
+
कभी ज़हर तो कभी
पांच का नोट हमने उठाया,<br>
+
अमृत के घूंट पिलाए हैं।
बीस पैसे टिप में डाले<br>
+
- वह जो लिपस्टिक और पाउडर में
यंत्र से आवाज़ आई-<br>
+
पुती हुई लड़की है
चले आते हैं<br>
+
हमें मालूम है
मनहूस, कंजड़ कहीं के साले,<br>
+
उसके घर में कितनी कड़की है!
टिप में पूरे आठ आने भी नहीं डाले।<br>
+
- और वह जो पनवाड़ी है
हमने सोचा- ग़नीमत है<br>
+
यंत्र ने बता दिया
कुछ महाविशेषण और नहीं निकाले।<br>
+
कि हमारे पान में
 +
उसकी बीवी की झूठी सुपारी है।
 +
एक दिन कविसम्मेलन मंच पर भी
 +
अपना यंत्र लाए थे
 +
हमें सब पता था
 +
कौन-कौन कवि
 +
क्या-क्या करके आए थे।
  
ख़ैर साहब!<br>
+
ऊपर से वाह-वाह
इस यंत्र ने बड़े-बड़े गुल खिलाए हैं<br>
+
दिल में कराह
कभी ज़हर तो कभी<br>
+
अगला हूट हो जाए पूरी चाह।
अमृत के घूंट पिलाए हैं।<br>
+
दिमाग़ों में आलोचनाओं का इज़ाफ़ा था,
- वह जो लिपस्टिक और पाउडर में<br>
+
कुछ के सिरों में सिर्फ
पुती हुई लड़की है<br>
+
संयोजक का लिफ़ाफ़ा था।
हमें मालूम है<br>
+
उसके घर में कितनी कड़की है!<br>
+
- और वह जो पनवाड़ी है<br>
+
यंत्र ने बता दिया<br>
+
कि हमारे पान में<br>
+
उसकी बीवी की झूठी सुपारी है।<br>
+
एक दिन कविसम्मेलन मंच पर भी<br>
+
अपना यंत्र लाए थे<br>
+
हमें सब पता था<br>
+
कौन-कौन कवि<br>
+
क्या-क्या करके आए थे।<br>
+
  
ऊपर से वाह-वाह<br>
+
ख़ैर साहब,
दिल में कराह<br>
+
इस यंत्र से हर तरह का भ्रम गया
अगला हूट हो जाए पूरी चाह।<br>
+
और मेरे काव्य-पाठ के दौरान
दिमाग़ों में आलोचनाओं का इज़ाफ़ा था,<br>
+
कई कवि मित्र
कुछ के सिरों में सिर्फ<br>
+
एक साथ सोच रहे थे-
संयोजक का लिफ़ाफ़ा था।<br>
+
अरे ये तो जम गया!
 
+
ख़ैर साहब,<br>
+
इस यंत्र से हर तरह का भ्रम गया<br>
+
और मेरे काव्य-पाठ के दौरान<br>
+
कई कवि मित्र<br>
+
एक साथ सोच रहे थे-<br>
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अरे ये तो जम गया!<br>
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10:50, 1 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

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ठोकर खाकर हमने
जैसे ही यंत्र को उठाया,
मस्तक में शूं-शूं की ध्वनि हुई
कुछ घरघराया।
झटके से गरदन घुमाई,
पत्नी को देखा
अब यंत्र से
पत्नी की आवाज़ आई-
मैं तो भर पाई!
सड़क पर चलने तक का
तरीक़ा नहीं आता,
कोई भी मैनर
या सली़क़ा नहीं आता।
बीवी साथ है
यह तक भूल जाते हैं,
और भिखमंगे नदीदों की तरह
चीज़ें उठाते हैं।
....इनसे
इनसे तो
वो पूना वाला
इंजीनियर ही ठीक था,
जीप में बिठा के मुझे शॉपिंग कराता
इस तरह राह चलते
ठोकर तो न खाता।
हमने सोचा-
यंत्र ख़तरनाक है!
और ये भी एक इत्तेफ़ाक़ है
कि हमको मिला है,
और मिलते ही
पूना वाला गुल खिला है।

और भी देखते हैं
क्या-क्या गुल खिलते हैं?
अब ज़रा यार-दोस्तों से मिलते हैं।
तो हमने एक दोस्त का
दरवाज़ा खटखटाया
द्वार खोला, निकला, मुस्कुराया,
दिमाग़ में होने लगी आहट
कुछ शूं-शूं
कुछ घरघराहट।
यंत्र से आवाज़ आई-
अकेला ही आया है,
अपनी छप्पनछुरी,
गुलबदन को
नहीं लाया है।
प्रकट में बोला-
ओहो!
कमीज़ तो बड़ी फ़ैन्सी है!
और सब ठीक है?
मतलब, भाभीजी कैसी हैं?
हमने कहा-
भा...भी....जी
या छप्पनछुरी गुलबदन?
वो बोला-
होश की दवा करो श्रीमन्‌
क्या अण्ट-शण्ट बकते हो,
भाभीजी के लिए
कैसे-कैसे शब्दों का
प्रयोग करते हो?
हमने सोचा-
कैसा नट रहा है,
अपनी सोची हुई बातों से ही
हट रहा है।
सो फ़ैसला किया-
अब से बस सुन लिया करेंगे,
कोई भी अच्छी या बुरी
प्रतिक्रिया नहीं करेंगे।

लेकिन अनुभव हुए नए-नए
एक आदर्शवादी दोस्त के घर गए।
स्वयं नहीं निकले
वे आईं,
हाथ जोड़कर मुस्कुराईं-
मस्तक में भयंकर पीड़ा थी
अभी-अभी सोए हैं।
यंत्र ने बताया-
बिल्कुल नहीं सोए हैं
न कहीं पीड़ा हो रही है,
कुछ अनन्य मित्रों के साथ
द्यूत-क्रीड़ा हो रही है।
अगले दिन कॉलिज में
बी०ए० फ़ाइनल की क्लास में
एक लड़की बैठी थी
खिड़की के पास में।
लग रहा था
हमारा लैक्चर नहीं सुन रही है
अपने मन में
कुछ और-ही-और
गुन रही है।
तो यंत्र को ऑन कर
हमने जो देखा,
खिंच गई हृदय पर
हर्ष की रेखा।
यंत्र से आवाज़ आई-
सरजी यों तो बहुत अच्छे हैं,
लंबे और होते तो
कितने स्मार्ट होते!
एक सहपाठी
जो कॉपी पर उसका
चित्र बना रहा था,
मन-ही-मन उसके साथ
पिकनिक मना रहा था।
हमने सोचा-
फ़्रायड ने सारी बातें
ठीक ही कही हैं,
कि इंसान की खोपड़ी में
सैक्स के अलावा कुछ नहीं है।
कुछ बातें तो
इतनी घिनौनी हैं,
जिन्हें बतलाने में
भाषाएं बौनी हैं।

एक बार होटल में
बेयरा पांच रुपये बीस पैसे
वापस लाया
पांच का नोट हमने उठाया,
बीस पैसे टिप में डाले
यंत्र से आवाज़ आई-
चले आते हैं
मनहूस, कंजड़ कहीं के साले,
टिप में पूरे आठ आने भी नहीं डाले।
हमने सोचा- ग़नीमत है
कुछ महाविशेषण और नहीं निकाले।

ख़ैर साहब!
इस यंत्र ने बड़े-बड़े गुल खिलाए हैं
कभी ज़हर तो कभी
अमृत के घूंट पिलाए हैं।
- वह जो लिपस्टिक और पाउडर में
पुती हुई लड़की है
हमें मालूम है
उसके घर में कितनी कड़की है!
- और वह जो पनवाड़ी है
यंत्र ने बता दिया
कि हमारे पान में
उसकी बीवी की झूठी सुपारी है।
एक दिन कविसम्मेलन मंच पर भी
अपना यंत्र लाए थे
हमें सब पता था
कौन-कौन कवि
क्या-क्या करके आए थे।

ऊपर से वाह-वाह
दिल में कराह
अगला हूट हो जाए पूरी चाह।
दिमाग़ों में आलोचनाओं का इज़ाफ़ा था,
कुछ के सिरों में सिर्फ
संयोजक का लिफ़ाफ़ा था।

ख़ैर साहब,
इस यंत्र से हर तरह का भ्रम गया
और मेरे काव्य-पाठ के दौरान
कई कवि मित्र
एक साथ सोच रहे थे-
अरे ये तो जम गया!