भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मौन / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ }} बैठ लें कुछ देर,<br> आओ,ए...) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
− | |||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | + | |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" | |
− | |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी | + | |
− | + | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | बैठ लें कुछ देर, | + | <poem> |
− | आओ,एक पथ के पथिक-से | + | बैठ लें कुछ देर, |
− | प्रिय, अंत और अनन्त के, | + | आओ,एक पथ के पथिक-से |
− | तम-गहन-जीवन घेर। | + | प्रिय, अंत और अनन्त के, |
− | मौन मधु हो जाए | + | तम-गहन-जीवन घेर। |
− | भाषा मूकता की आड़ में, | + | मौन मधु हो जाए |
− | मन सरलता की बाढ़ में, | + | भाषा मूकता की आड़ में, |
− | जल-बिन्दु सा बह जाए। | + | मन सरलता की बाढ़ में, |
− | सरल अति स्वच्छ्न्द | + | जल-बिन्दु सा बह जाए। |
− | जीवन, प्रात के लघुपात से, | + | सरल अति स्वच्छ्न्द |
− | उत्थान-पतनाघात से | + | जीवन, प्रात के लघुपात से, |
− | रह जाए चुप,निर्द्वन्द ।< | + | उत्थान-पतनाघात से |
+ | रह जाए चुप,निर्द्वन्द । | ||
+ | </poem> |
11:42, 15 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण
बैठ लें कुछ देर,
आओ,एक पथ के पथिक-से
प्रिय, अंत और अनन्त के,
तम-गहन-जीवन घेर।
मौन मधु हो जाए
भाषा मूकता की आड़ में,
मन सरलता की बाढ़ में,
जल-बिन्दु सा बह जाए।
सरल अति स्वच्छ्न्द
जीवन, प्रात के लघुपात से,
उत्थान-पतनाघात से
रह जाए चुप,निर्द्वन्द ।