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− | मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि । | + | मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि । |
− | सीता हरन मरन दसरथ को, बनमें बिपति परी ॥ १॥ | + | सीता हरन मरन दसरथ को, बनमें बिपति परी ॥ १॥ |
− | + | कहॅं वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहॅं वह मिरग चरी । | |
− | कहॅं वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहॅं वह मिरग चरी । | + | कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि ॥ २॥ |
− | कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि ॥ २॥ | + | पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर बिपति परी । |
− | + | कहत कबीर सुनो भै साधो, होने होके रही ॥ ३॥ | |
− | पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर बिपति परी । | + | |
− | कहत कबीर सुनो भै साधो, होने होके रही ॥ ३॥ | + |
16:25, 7 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
करम गति टारै नाहिं टरी ॥
मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि ।
सीता हरन मरन दसरथ को, बनमें बिपति परी ॥ १॥
कहॅं वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहॅं वह मिरग चरी ।
कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि ॥ २॥
पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर बिपति परी ।
कहत कबीर सुनो भै साधो, होने होके रही ॥ ३॥