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लोकतंत्र का धोखा बना रहे
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रचनाकार: [[दिनकर कुमार]]
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विचारधाराओं के मुखौटे लगाकर
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
कारोबार करने वाली राजनीतिक पार्टियाँ
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असल में निजी कम्पनियाँ हैं
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जो हमें शेयर की तरह उछालती हैं
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बेचती हैं ख़रीदती हैं निपटाती हैं
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निजी कंपनियों के जैसे होते हैं मालिक-मालिकिन
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वैसे ही इन पार्टियों के भी हैं मालिक-मालिकिन
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
जो विज्ञापनों के सहारे
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हमें डराती हैं कि अगर हमने प्रतिद्वंद्वी कम्पनी का
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दामन थाम लिया तो हम कहीं के नहीं रहेंगे
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ये कम्पनियाँ संकटों को प्रायोजित करती हैं
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उसी तरह जैसे दंगों को प्रायोजित करती हैं
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
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अपरिचित पास आओ
  
मुखौटे उतारने पर इन सभी कम्पनियों के चेहरे
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
एक जैसे लगते हैं
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
एक जैसी ही विचारधारा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
एक जैसी ही लिप्सा
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
एक ही मकसद
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
कि लोकतंत्र का धोखा बना रहे
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सबमें अपनेपन की माया
लेकिन हम बने रहें युगों-युगों तक ग़ुलाम।
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अपने पन में जीवन आया
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया