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"कुछ नहीं / जयशंकर प्रसाद" के अवतरणों में अंतर
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हँसी आती हैं मुझको तभी, | हँसी आती हैं मुझको तभी, | ||
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जब कि यह कहता कोई कहीं- | जब कि यह कहता कोई कहीं- | ||
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अरे सच, वह तो हैं कंगाल, | अरे सच, वह तो हैं कंगाल, | ||
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अमुक धन उसके पास नहीं। | अमुक धन उसके पास नहीं। | ||
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सकल निधियों का वह आधार, | सकल निधियों का वह आधार, | ||
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प्रमाता अखिल विश्व का सत्य, | प्रमाता अखिल विश्व का सत्य, | ||
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लिये सब उसके बैठा पास, | लिये सब उसके बैठा पास, | ||
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उसे आवश्यकता ही नही। | उसे आवश्यकता ही नही। | ||
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और तुम लेकर फेंकी वस्तु, | और तुम लेकर फेंकी वस्तु, | ||
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गर्व करते हो मन में तुच्छ, | गर्व करते हो मन में तुच्छ, | ||
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कभी जब ले लेगा वह उसे, | कभी जब ले लेगा वह उसे, | ||
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तुम्हारा तब सब होगा नहीं। | तुम्हारा तब सब होगा नहीं। | ||
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तुम्हीं तब हो जाओगे दीन, | तुम्हीं तब हो जाओगे दीन, | ||
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और जिसका सब संचित किए, | और जिसका सब संचित किए, | ||
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साथ बैठा है सब का नाथ, | साथ बैठा है सब का नाथ, | ||
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उसे फिर कमी कहाँ की रही? | उसे फिर कमी कहाँ की रही? | ||
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शान्त रत्नाकर का नाविक, | शान्त रत्नाकर का नाविक, | ||
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गुप्त निधियों का रक्षक यक्ष, | गुप्त निधियों का रक्षक यक्ष, | ||
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कर रहा वह देखो मृदु हास, | कर रहा वह देखो मृदु हास, | ||
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और तुम कहते हो कुछ नहीं। | और तुम कहते हो कुछ नहीं। | ||
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00:28, 20 दिसम्बर 2009 के समय का अवतरण
हँसी आती हैं मुझको तभी,
जब कि यह कहता कोई कहीं-
अरे सच, वह तो हैं कंगाल,
अमुक धन उसके पास नहीं।
सकल निधियों का वह आधार,
प्रमाता अखिल विश्व का सत्य,
लिये सब उसके बैठा पास,
उसे आवश्यकता ही नही।
और तुम लेकर फेंकी वस्तु,
गर्व करते हो मन में तुच्छ,
कभी जब ले लेगा वह उसे,
तुम्हारा तब सब होगा नहीं।
तुम्हीं तब हो जाओगे दीन,
और जिसका सब संचित किए,
साथ बैठा है सब का नाथ,
उसे फिर कमी कहाँ की रही?
शान्त रत्नाकर का नाविक,
गुप्त निधियों का रक्षक यक्ष,
कर रहा वह देखो मृदु हास,
और तुम कहते हो कुछ नहीं।