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गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गए
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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रचनाकार: [[खातिर ग़ज़नवी]]
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
गो ज़रा सी बात पर बरसों के याराने गए
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
लेकिन इतना तो हुआ कुछ लोग पहचाने गए
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अपरिचित पास आओ
  
गर्मी-ए-महफ़िल फ़क़त इक नारा-ए-मस्ताना है
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
और वो ख़ुश हैं कि इस महफ़िल से दीवाने गए
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
मैं इसे शोहरत कहूँ या अपनी रूसवाई कहूँ
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सबमें अपनेपन की माया
मुझ से पहले उस गली में मेरे अफ़साने गए
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अपने पन में जीवन आया
 
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वहशतें कफछ इस तरह अपना मुक़द्र बन गईं
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हम जहाँ पहुँचे हमारे साथ वीराने गए
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यूँ तो मेरी रग-ए-जाँ से भी थे नज़दीक-तर
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आँसुओं की धुँद में लेकिन न पहचाने गए
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अब भी उन यादों की ख़ुश-बू जे़हन में महफ़ूज है
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बारहा हम जिन से गुलज़ारों को महकाने गए
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क्या क़यामत है के ‘ख़ातिर’ कुश्ता-ए-शब थे भी हम
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सुब्ह भी आई तो मुजरिम हम ही गर्दाने गए
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया