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"या पूरी पृथ्वी / मनोज कुमार झा" के अवतरणों में अंतर
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इतना घना जंगल दिखता नहीं एक भी पका फल | इतना घना जंगल दिखता नहीं एक भी पका फल | ||
किस घाट का पानी इसमें डाभ नहीं कर रहा ढबढब | किस घाट का पानी इसमें डाभ नहीं कर रहा ढबढब | ||
− | इतने रंग चकमक मगर बन नहीं पाता | + | इतने रंग चकमक मगर बन नहीं पाता इन्द्रधनुष क्या रंगों के दूध फटे हुए । |
घर ही तो छोड़ा एक खुली तो है पूरी पृथ्वी | घर ही तो छोड़ा एक खुली तो है पूरी पृथ्वी | ||
− | पर कहीं भी गाड़ूँ | + | पर कहीं भी गाड़ूँ खम्भा वहीं तारे आसमान में |
− | अकबक आँख का | + | अकबक आँख का गोला । |
कहीं है थोड़ी जगह जहाँ सुखा सकूँ इस पुरानी थकान में भीगे बाल | कहीं है थोड़ी जगह जहाँ सुखा सकूँ इस पुरानी थकान में भीगे बाल | ||
− | या पूरी पृथ्वी माघ की बारिश में भींगती बकरी कान | + | या पूरी पृथ्वी माघ की बारिश में भींगती बकरी कान पटपटाती । |
14:48, 7 जनवरी 2015 के समय का अवतरण
दूब क्यों इतनी कड़ी नींद के भी तलुए को छीलती
इतना घना जंगल दिखता नहीं एक भी पका फल
किस घाट का पानी इसमें डाभ नहीं कर रहा ढबढब
इतने रंग चकमक मगर बन नहीं पाता इन्द्रधनुष क्या रंगों के दूध फटे हुए ।
घर ही तो छोड़ा एक खुली तो है पूरी पृथ्वी
पर कहीं भी गाड़ूँ खम्भा वहीं तारे आसमान में
अकबक आँख का गोला ।
कहीं है थोड़ी जगह जहाँ सुखा सकूँ इस पुरानी थकान में भीगे बाल
या पूरी पृथ्वी माघ की बारिश में भींगती बकरी कान पटपटाती ।