भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"आँख में आँसू दिये किसने / सुधेश" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधेश }} {{KKCatGeet}} <poem> आँख में आँसू दिये ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
जोकि मैं ने जन्म से पाई | जोकि मैं ने जन्म से पाई | ||
जब कहीं बदली उठी ग़म की | जब कहीं बदली उठी ग़म की | ||
− | नयन में वर्षा | + | नयन में वर्षा उतर आई । |
पाँव मेरे जंगलों भटके | पाँव मेरे जंगलों भटके | ||
राज पथ पर क्यों फिसलते हैं । | राज पथ पर क्यों फिसलते हैं । | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
डूबते तैराक ही अक्सर | डूबते तैराक ही अक्सर | ||
तमाशाई तो सँभलते हैं । | तमाशाई तो सँभलते हैं । | ||
− | स्वर्ग | + | स्वर्ग उतरा राजपथ पर है |
नरक जनपथ हो गया अब तो | नरक जनपथ हो गया अब तो | ||
देश भक्षक खा रहे सब कुछ | देश भक्षक खा रहे सब कुछ |
12:27, 8 जुलाई 2013 के समय का अवतरण
आँख में आँसू दिये किस ने
ये बिना कारण निकलते हैं ।
दुक्ख तो है हृदय की थाती
जोकि मैं ने जन्म से पाई
जब कहीं बदली उठी ग़म की
नयन में वर्षा उतर आई ।
पाँव मेरे जंगलों भटके
राज पथ पर क्यों फिसलते हैं ।
दुक्ख अपना ही लगा पर्वत
दूसरे का दुख लगा राई
सब बराबर हो गये लेकिन
जब प़लय की घड़ी लहराई ।
डूबते तैराक ही अक्सर
तमाशाई तो सँभलते हैं ।
स्वर्ग उतरा राजपथ पर है
नरक जनपथ हो गया अब तो
देश भक्षक खा रहे सब कुछ
देंश रक्षक सो गया अब तो ।
जन कभी हँसते कभी रोते
पर वही दुनिया बदलते हैं ।