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"आँख में आँसू दिये किसने / सुधेश" के अवतरणों में अंतर

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         जोकि मैं ने जन्म से पाई  
 
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         जब कहीं बदली उठी ग़म की  
 
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           नयन में वर्षा ंउतर आई ।
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पाँव मेरे जंगलों  भटके  
 
पाँव मेरे जंगलों  भटके  
 
राज पथ पर क्यों फिसलते हैं ।
 
राज पथ पर क्यों फिसलते हैं ।
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डूबते तैराक ही अक्सर  
 
डूबते तैराक ही अक्सर  
 
तमाशाई तो सँभलते हैं  ।
 
तमाशाई तो सँभलते हैं  ।
             स्वर्ग ंउतरा राजपथ पर है  
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             नरक जनपथ हो गया अब तो  
 
             नरक जनपथ हो गया अब तो  
 
             देश भक्षक खा रहे सब कुछ  
 
             देश भक्षक खा रहे सब कुछ  

12:27, 8 जुलाई 2013 के समय का अवतरण

आँख में आँसू दिये किस ने
ये बिना कारण निकलते हैं ।
         दुक्ख तो है हृदय की थाती
         जोकि मैं ने जन्म से पाई
         जब कहीं बदली उठी ग़म की
          नयन में वर्षा उतर आई ।
पाँव मेरे जंगलों भटके
राज पथ पर क्यों फिसलते हैं ।
           दुक्ख अपना ही लगा पर्वत
           दूसरे का दुख लगा राई
           सब बराबर हो गये लेकिन
            जब प़लय की घड़ी लहराई ।
डूबते तैराक ही अक्सर
तमाशाई तो सँभलते हैं ।
             स्वर्ग उतरा राजपथ पर है
             नरक जनपथ हो गया अब तो
             देश भक्षक खा रहे सब कुछ
             देंश रक्षक सो गया अब तो ।
जन कभी हँसते कभी रोते
पर वही दुनिया बदलते हैं ।