भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"स्त्री देह / पाब्लो नेरूदा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=पाब्लो नेरूदा |संग्रह=बीस प्रेम कविताएँ और विषाद क...)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 4 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
}}
 
}}
 
[[Category:स्पानी भाषा]]
 
[[Category:स्पानी भाषा]]
 +
<poem>
 +
स्त्री देह, सफ़ेद पहाड़ियाँ, उजली रानें
 +
तुम बिल्कुल वैसी दिखती हो जैसी यह दुनिया
 +
समर्पण में लेटी—
 +
मेरी रूखी किसान देह धँसती है तुममें
 +
और धरती की गहराई से लेती एक वंशवृक्षी उछाल ।
  
स्त्री देह, सफ़ेद पहाड़ियाँ, उजली रानें<br>
+
अकेला था मैं एक सुरंग की तरह, पक्षी भरते उड़ान मुझ में
तुम बिल्कुल वैसी दिखती हो जैसी यह दुनिया<br>
+
रात मुझे जलमग्न कर देती अपने परास्त कर देने वाले हमले से
समर्पण में लेटी--<br>
+
ख़ुद को बचाने के वास्ते एक हथियार की तरह गढ़ा मैंने तुम्हें,
मेरी रूखी किसान देह धँसती है तुममें<br>
+
एक तीर की तरह मेरे धनुष में, एक पत्थर जैसे गुलेल में
और धरती की गहराई से लेती एक वंशवृक्षी उछाल ।<br><br>
+
  
अकेला था मैं एक सुरंग की तरह, पक्षी भरते उड़ान मुझ में<br>
+
गिरता है प्रतिशोध का समय लेकिन, और मैं तुझे प्यार करता हूँ
रात मुझे जलमग्न कर देती अपने परास्त कर देने वाले हमले से<br>
+
चिकनी हरी काई की रपटीली त्वचा का, यह ठोस बेचैन जिस्म दुहता हूँ मैं
ख़ुद को बचाने के वास्ते एक हथियार की तरह गढ़ा मैंने तुम्हें,<br>
+
ओह ! ये गोलक वक्ष के, ओह ! ये कहीं खोई-सी आँखें,
एक तीर की तरह मेरे धनुष में, एक पत्थर जैसे गुलेल में<br><br>
+
ओह ! ये गुलाब तरुणाई के, ओह ! तुम्हारी आवाज़ धीमी और उदास !
  
गिरता है प्रतिशोध का समय लेकिन,और मैं तुझे प्यार करता हूँ<br>
+
ओ मेरी प्रिया-देह ! मैं तेरी कृपा में बना रहूँगा
चिकनी हरी काई की रपटीली त्वचा का, यह ठोस बेचैन जिस्म दुहता हूँ मैं<br>
+
मेरी प्यास, मेरी अन्तहीन इच्छाएँ, ये बदलते हुए राजमार्ग !
ओह ! ये गोलक वक्ष के, ओह ! ये कहीं खोई-सी आँखें,<br>
+
उदास नदी-तालों से बहती सतत प्यास और पीछे हो लेती थकान,
ओह ! ये गुलाब तरुणाई के, ओह ! तुम्हारी आवाज़ धीमी और उदास !<br>
+
और यह असीम पीड़ा !
  
ओ मेरी प्रिया-देह !मैं तेरी कृपा में बना रहूंगा<br>
+
'''अँग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद : मधु शर्मा'''
मेरी प्यास मेरी अन्तहीन इच्छाएँ, ये बदलते हुए राजमार्ग !<br>
+
</poem>
उदास नदी-तालों से बहती सतत प्यास और पीछे हो लेती थकान,<br>
+
और यह असीम पीड़ा !<br>
+

22:01, 2 जून 2012 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: पाब्लो नेरूदा  » संग्रह: बीस प्रेम कविताएँ और विषाद का एक गीत
»  स्त्री देह

स्त्री देह, सफ़ेद पहाड़ियाँ, उजली रानें
तुम बिल्कुल वैसी दिखती हो जैसी यह दुनिया
समर्पण में लेटी—
मेरी रूखी किसान देह धँसती है तुममें
और धरती की गहराई से लेती एक वंशवृक्षी उछाल ।

अकेला था मैं एक सुरंग की तरह, पक्षी भरते उड़ान मुझ में
रात मुझे जलमग्न कर देती अपने परास्त कर देने वाले हमले से
ख़ुद को बचाने के वास्ते एक हथियार की तरह गढ़ा मैंने तुम्हें,
एक तीर की तरह मेरे धनुष में, एक पत्थर जैसे गुलेल में

गिरता है प्रतिशोध का समय लेकिन, और मैं तुझे प्यार करता हूँ
चिकनी हरी काई की रपटीली त्वचा का, यह ठोस बेचैन जिस्म दुहता हूँ मैं
ओह ! ये गोलक वक्ष के, ओह ! ये कहीं खोई-सी आँखें,
ओह ! ये गुलाब तरुणाई के, ओह ! तुम्हारी आवाज़ धीमी और उदास !

ओ मेरी प्रिया-देह ! मैं तेरी कृपा में बना रहूँगा
मेरी प्यास, मेरी अन्तहीन इच्छाएँ, ये बदलते हुए राजमार्ग !
उदास नदी-तालों से बहती सतत प्यास और पीछे हो लेती थकान,
और यह असीम पीड़ा !

अँग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद : मधु शर्मा