भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 36 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
<div style="background:#eee; padding:10px">
 
<div style="background:#eee; padding:10px">
<div style="background:#ddd; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:3px inset #aaa; padding:10px">
+
<div style="background: transparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px">
  
<div style="font-size:120%; color:#a00000">
+
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
समूहगान</div>
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
  
<div>
+
<div style="text-align: center;">
रचनाकार: [[शैलेन्द्र]]
+
रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
 
</div>
 
</div>
  
<poem>
+
<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
क्रान्ति के लिए जली मशाल
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
क्रान्ति के लिए उठे क़दम !
+
अपरिचित पास आओ
  
भूख के विरुद्ध भात के लिए
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
रात के विरुद्ध प्रात के लिए
+
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
मेहनती ग़रीब जाति के लिए
+
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
हम लड़ेंगे, हमने ली कसम !
+
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
 +
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
 +
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
  
छिन रही हैं आदमी की रोटियाँ
+
सबमें अपनेपन की माया
बिक रही हैं आदमी की बोटियाँ
+
अपने पन में जीवन आया
किन्तु सेठ भर रहे हैं कोठियाँ
+
</div>
लूट का यह राज हो ख़तम !
+
 
+
तय है जय मजूर की, किसान की
+
देश की, जहान की, अवाम की
+
ख़ून से रंगे हुए निशान की
+
लिख रही है मार्क्स की क़लम !
+
</poem>
+
 
</div></div>
 
</div></div>

19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया