Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
<poem> | <poem> | ||
तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये। | तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये। | ||
− | थे कभी मुख्पृष्ठ पर अब हाशियों तक आ | + | थे कभी मुख्पृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये॥ |
− | यवनिका बदली कि सारा दृष्य बदला मंच | + | यवनिका बदली कि सारा दृष्य बदला मंच का। |
− | थे कभी दुल्हा स्वयं बारातियों तक आ | + | थे कभी दुल्हा स्वयं बारातियों तक आ गये॥ |
− | वक्त का पहिया किसे कुचले | + | वक्त का पहिया किसे कुचले कहाँ कब क्या पता। |
− | थे कभी रथवान अब बैसाखियों तक आ | + | थे कभी रथवान अब बैसाखियों तक आ गये॥ |
− | देख ली सत्ता किसी वारांगना से कम | + | देख ली सत्ता किसी वारांगना से कम नहीं। |
− | जो कि अध्यादेश थे खुद अर्जियों तक आ | + | जो कि अध्यादेश थे खुद अर्जियों तक आ गये॥ |
− | देश के संदर्भ | + | देश के संदर्भ में तुम बोल लेते खूब हो। |
− | बात ध्वज की थी चलाई कुर्सियों तक आ | + | बात ध्वज की थी चलाई कुर्सियों तक आ गये॥ |
− | प्रेम के आख्यान | + | प्रेम के आख्यान में तुम आत्मा से थे चले। |
− | घूम फिर कर देह की गोलाईयों तक आ | + | घूम फिर कर देह की गोलाईयों तक आ गये॥ |
− | कुछ बिके आलोचकों की मानकर ही गीत | + | कुछ बिके आलोचकों की मानकर ही गीत को। |
− | तुम ॠचाएं मानते थे गालियों तक आ | + | तुम ॠचाएं मानते थे गालियों तक आ गये॥ |
− | सभ्यता के पंथ पर यह आदमी की | + | सभ्यता के पंथ पर यह आदमी की यात्रा। |
− | देवताओं से | + | देवताओं से शुरू की वहशियों तक आ गये॥ |
</poem> | </poem> |
03:27, 17 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
तुम कभी थे सूर्य लेकिन अब दियों तक आ गये।
थे कभी मुख्पृष्ठ पर अब हाशियों तक आ गये॥
यवनिका बदली कि सारा दृष्य बदला मंच का।
थे कभी दुल्हा स्वयं बारातियों तक आ गये॥
वक्त का पहिया किसे कुचले कहाँ कब क्या पता।
थे कभी रथवान अब बैसाखियों तक आ गये॥
देख ली सत्ता किसी वारांगना से कम नहीं।
जो कि अध्यादेश थे खुद अर्जियों तक आ गये॥
देश के संदर्भ में तुम बोल लेते खूब हो।
बात ध्वज की थी चलाई कुर्सियों तक आ गये॥
प्रेम के आख्यान में तुम आत्मा से थे चले।
घूम फिर कर देह की गोलाईयों तक आ गये॥
कुछ बिके आलोचकों की मानकर ही गीत को।
तुम ॠचाएं मानते थे गालियों तक आ गये॥
सभ्यता के पंथ पर यह आदमी की यात्रा।
देवताओं से शुरू की वहशियों तक आ गये॥