भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छू आई बादल के गांव / मानोशी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | {{ | + | {{KKCatGeet}} |
<poem> | <poem> | ||
छू आई बादल के गाँव | | छू आई बादल के गाँव | |
07:47, 21 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण
छू आई बादल के गाँव |
बहुत दिनों के
बाद सखी री,
उमड़ घुमड़ कर
गरजी बरसी,
बीते मौसम में हो आई,
धो आई मैं स्मृति के ठाँव |
कुनमुन सी ये
धूप सुनहरी,
बस इक क्षण की
बनी सहचरी ,
फिर पायल बन रुनझुन में ढल,
सज गई दो सखियन के पांव |
मछली कंटक
फँसी मचलती,
प्रीति डोर से
बंधी तड़पती,
साजन जो बिछड़े इस सावन,
हृदय प्राण सब लग गये दांव |
छू आई बादल के गाँव ।