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"सुन सखिया हे, दस सखिन सिर मटुकी रे / भोजपुरी" के अवतरणों में अंतर

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सुन सखिया हे, नाहिन मोर नागिंन मतिया भुलइले, नहीं मोर बन गउवा हेराई,
 
सुन सखिया हे, नाहिन मोर नागिंन मतिया भुलइले, नहीं मोर बन गउवा हेराई,
 
गेंदा उदेसे अइलीं नागिन, चलि अइलीं इन्द्र फुलवारी हे।।५।।
 
गेंदा उदेसे अइलीं नागिन, चलि अइलीं इन्द्र फुलवारी हे।।५।।
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(पाठ-भेद)
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सुन सखिया हे, दस सखी सिर मटुकी रे मटुकी, भोर-सबेरे चलि जाई।
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सिरि वृन्दावन कुंजगलिन में, जहाँ कृष्ण गउवा चरावे।।१।।
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सुन सखिया हे, दधि मोर खइले, मटुकी सिर फोड़े, गेडुली जमुनी दहुआई है।
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अंग-अंग कृष्ण प्रीत लगाये, तोही से नैना हमारी हे।।२।।
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सुन सखिया हे, नदिया किनारे अशोक घन-गछिया, छिछन-बिछन भइले डार।
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ताहि तरे कृष्ण गेंद खेलतु हैं, खेलत कुष्ण मुरारी हे।।३।।
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सुन सखिया हे, कहाँ के गेंदा कहाँ चलि गइले, चलि गइले नाग फुलवारी हे।
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मरत गेंद गिरे जमुना में, संगहीं में धँसत मुरारी।।४।।
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सुन सखिया हे, केकर होलऽ तू बारी से भोरी, केकर होलऽ नन्दलाल।
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केकर पठबल अइलऽ हो कृष्ण, चलि अइलऽ नाग-फुलवारी।।५।।
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सुन सखिया हे, जसोदा के होली बारी से भोरी, नन्दलाल कहि पुत्र।
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गेंदा उदेसे अइलीं हो नागिन, चलि अइलीं नाग-फुलवारी।।६।।
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सुन सखिया हे, ऐतना बचन जब नागिन सुने, नाग के दिहली जगाई हे।
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सहस्र फेन जब छोड़े नागजी, कृष्ण झँवर होई जाई।।७।।
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सुन सखिया हे, इनर डोले, इनरासन डोले, गडुला झरेले तीन सौ साठ हे।
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परल-परल कृष्ण गडुला पुकारे, गडुला त भइले सहाई हे।।८।।
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सुन सखिया हे, सहस्र फेन जब सुरकेले गडुला, जाग उठेले रिसिआई।
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गोरे जे लागिले पैयाँ जे पड़ी, सुन गडुला अरजी हमार हे।।९।।
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सुन सखिया हे, गोर जे लागिले पइयाँ जे पड़ी सुनी गडुला अरजी हमार हे।
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जवन बात करीह आहे गडुला, रखि दिह सेनुरी हमार हे।।१0।।
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सुन सखिया हे, कुसवा उखाड़ी कृष्ण नाग के नाथे, पीठियन भइले असवारी हे।
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ढोकेले नागिन नाग जे उड़े, ले गोखुला पहुँचाई हे।।११।।
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सुन सखिया हे, पाँच फुल तूड़ि नाग पीठि लादे, पीठिअन भइले असवारी हे।
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ढोकले नागिन नाग जे उड़े, ले मथुरा पहुँचाई हे।।१२।।
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सुन सखिया हे, बुध अस मारे, विप्र अस भाखन, तिरिया मस्त जवानी हे।
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बूढ़ वर तरुणी नाहीं चीन्हें, खोजत जोन परमान हे।।
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सुन सखिया हे, मरी-हरी जइतें, बुढ़वा रे खुड़वा, घर-घर करेले खेखार।
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हमारी-हेहरी जइतें बुढ़वा रे, खुड़वा, खोजी लेतीं जोग परमान।।
 
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10:07, 20 दिसम्बर 2013 के समय का अवतरण

सुन सखिया हे, दस सखिन सिर मटुकी रे मटुकी, गोरस बेचनहारी हे।
सिरी बिरिदावन कुंज गालिन में, जहाँ कृष्ण गउवा चराई हे।।१।।
सुन सखिया हे, दधि मोर खइले, मटुकी सिर फोड़ले, गेडुली जमुन दहुआई हे।
अंगन अंग कृष्ण चोली-बंद फारे, गजमोती देले छितराई हे।।२।।
सुन सखया, दधि मोर खइले, मटुकी सिर, फोड़े, गेडुली जमुन दहुआई हे।
अंगन अंग कृष्ण पिरती लगावे, ताही से नैना हमार हे।।३।।
सुन सखिया हे, किया तोरे वाला रे मतिया भुलइले, किया वन गउवा हेराई,
केकर पठवल अइल बाला, चली अइल इन्द्र फुलवारी हे।।४।।
सुन सखिया हे, नाहिन मोर नागिंन मतिया भुलइले, नहीं मोर बन गउवा हेराई,
गेंदा उदेसे अइलीं नागिन, चलि अइलीं इन्द्र फुलवारी हे।।५।।

(पाठ-भेद)

सुन सखिया हे, दस सखी सिर मटुकी रे मटुकी, भोर-सबेरे चलि जाई।
सिरि वृन्दावन कुंजगलिन में, जहाँ कृष्ण गउवा चरावे।।१।।
सुन सखिया हे, दधि मोर खइले, मटुकी सिर फोड़े, गेडुली जमुनी दहुआई है।
अंग-अंग कृष्ण प्रीत लगाये, तोही से नैना हमारी हे।।२।।
सुन सखिया हे, नदिया किनारे अशोक घन-गछिया, छिछन-बिछन भइले डार।
ताहि तरे कृष्ण गेंद खेलतु हैं, खेलत कुष्ण मुरारी हे।।३।।
सुन सखिया हे, कहाँ के गेंदा कहाँ चलि गइले, चलि गइले नाग फुलवारी हे।
मरत गेंद गिरे जमुना में, संगहीं में धँसत मुरारी।।४।।
सुन सखिया हे, केकर होलऽ तू बारी से भोरी, केकर होलऽ नन्दलाल।
केकर पठबल अइलऽ हो कृष्ण, चलि अइलऽ नाग-फुलवारी।।५।।
सुन सखिया हे, जसोदा के होली बारी से भोरी, नन्दलाल कहि पुत्र।
गेंदा उदेसे अइलीं हो नागिन, चलि अइलीं नाग-फुलवारी।।६।।
सुन सखिया हे, ऐतना बचन जब नागिन सुने, नाग के दिहली जगाई हे।
सहस्र फेन जब छोड़े नागजी, कृष्ण झँवर होई जाई।।७।।
सुन सखिया हे, इनर डोले, इनरासन डोले, गडुला झरेले तीन सौ साठ हे।
परल-परल कृष्ण गडुला पुकारे, गडुला त भइले सहाई हे।।८।।
सुन सखिया हे, सहस्र फेन जब सुरकेले गडुला, जाग उठेले रिसिआई।
गोरे जे लागिले पैयाँ जे पड़ी, सुन गडुला अरजी हमार हे।।९।।
सुन सखिया हे, गोर जे लागिले पइयाँ जे पड़ी सुनी गडुला अरजी हमार हे।
जवन बात करीह आहे गडुला, रखि दिह सेनुरी हमार हे।।१0।।
सुन सखिया हे, कुसवा उखाड़ी कृष्ण नाग के नाथे, पीठियन भइले असवारी हे।
ढोकेले नागिन नाग जे उड़े, ले गोखुला पहुँचाई हे।।११।।
सुन सखिया हे, पाँच फुल तूड़ि नाग पीठि लादे, पीठिअन भइले असवारी हे।
ढोकले नागिन नाग जे उड़े, ले मथुरा पहुँचाई हे।।१२।।




सुन सखिया हे, बुध अस मारे, विप्र अस भाखन, तिरिया मस्त जवानी हे।
बूढ़ वर तरुणी नाहीं चीन्हें, खोजत जोन परमान हे।।
सुन सखिया हे, मरी-हरी जइतें, बुढ़वा रे खुड़वा, घर-घर करेले खेखार।
हमारी-हेहरी जइतें बुढ़वा रे, खुड़वा, खोजी लेतीं जोग परमान।।