"बुझे दीपक जला लूँ / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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− | + | झंकार मेरी स्नेह गीली, | |
− | + | इस मरण के पर्व को मैं आज दीपावली बना लूँ! | |
− | + | देख कर कोमल व्यथा को | |
− | + | आँसुओं के सजल रथ में, | |
− | + | मोम-सी साधें बिछा दी | |
− | + | थीं इसी अंगार-पथ में | |
− | + | स्वर्ण हैं वे मत हो अब क्षार में उन को सुला लूँ! | |
− | + | अब तरी पतवार ला कर | |
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− | आज दीपक राग गा लूँ ! | + |
02:49, 31 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण
सब बुझे दीपक जला लूँ!
घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूँ!
क्षितिज-कारा तोड़ कर अब
गा उठी उन्मत आँधी,
अब घटाओं में न रुकती
लास-तन्मय तड़ित् बाँधी,
धूलि की इस वीण पर मैं तार हर तृण का मिला लूँ!
भीत तारक मूँदते दृग
भ्रान्त मारुत पथ न पाता
छोड़ उल्का अंक नभ में
ध्वंस आता हरहराता,
उँगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूँ!
लय बनी मृदु वर्त्तिका
हर स्वर जला बन लौ सजीली,
फैलती आलोक-सी
झंकार मेरी स्नेह गीली,
इस मरण के पर्व को मैं आज दीपावली बना लूँ!
देख कर कोमल व्यथा को
आँसुओं के सजल रथ में,
मोम-सी साधें बिछा दी
थीं इसी अंगार-पथ में
स्वर्ण हैं वे मत हो अब क्षार में उन को सुला लूँ!
अब तरी पतवार ला कर
तुम दिखा मत पार देना,
आज गर्जन में मुझे बस
एक बार पुकार लेना !
ज्वार को तरणी बना मैं; इस प्रलय का पार पा लूँ!
आज दीपक राग गा लूँ !