"छूतछात / हरिऔध" के अवतरणों में अंतर
Sharda suman (चर्चा | योगदान) छो (Sharda suman moved page छूतछात to छूतछात / हरिऔध) |
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | जो बहुत दुख पा चुके हैं आज तक। | |
− | + | ||
कम न दुख होगा उन्हें अब दुख दिये। | कम न दुख होगा उन्हें अब दुख दिये। | ||
− | |||
सब तरह से जो बेचारे हैं दबे। | सब तरह से जो बेचारे हैं दबे। | ||
− | |||
मत उन्हें आँखें दबा कर देखिये। | मत उन्हें आँखें दबा कर देखिये। | ||
छूत क्या है, अछूत लोगों में। | छूत क्या है, अछूत लोगों में। | ||
− | |||
क्यों न उन का अछूतपन लखिये। | क्यों न उन का अछूतपन लखिये। | ||
− | |||
हाथ रखिये अनाथ के सिर पर। | हाथ रखिये अनाथ के सिर पर। | ||
− | |||
कान पर हाथ आप मत रखिये। | कान पर हाथ आप मत रखिये। | ||
भूत सिर पर है बड़प्पन का चढ़ा। | भूत सिर पर है बड़प्पन का चढ़ा। | ||
− | |||
छल रही है छूत जैसी बद बला। | छल रही है छूत जैसी बद बला। | ||
− | |||
कर बुरी बेकार बेजा ऐंठ क्यों। | कर बुरी बेकार बेजा ऐंठ क्यों। | ||
− | |||
जाति का हम ऐंठ देते हैं गला। | जाति का हम ऐंठ देते हैं गला। | ||
बाहरी जातपाँत के पचड़े। | बाहरी जातपाँत के पचड़े। | ||
− | |||
भीतरी छूतछात की साधों। | भीतरी छूतछात की साधों। | ||
− | + | हैं हमें बाँध बेतरह देतीं। | |
− | हैं हमें | + | |
− | + | ||
क्यों उन्हें जाति के गले बाँधों। | क्यों उन्हें जाति के गले बाँधों। | ||
है कही जाती कहीं पर दानवी। | है कही जाती कहीं पर दानवी। | ||
− | |||
पुज रही है वह बनी देवी कहीं। | पुज रही है वह बनी देवी कहीं। | ||
− | |||
आज छूआछूत - चिन्ता से छिदे। | आज छूआछूत - चिन्ता से छिदे। | ||
− | |||
कौन सी छाती हुई छलनी नहीं। | कौन सी छाती हुई छलनी नहीं। | ||
तब सके छूट क्यों छिछोरापन। | तब सके छूट क्यों छिछोरापन। | ||
− | |||
सूझ जब छाँह छू नहीं पाती। | सूझ जब छाँह छू नहीं पाती। | ||
− | |||
क्यों मिटे छूतछात के झगड़े। | क्यों मिटे छूतछात के झगड़े। | ||
− | |||
जब छिले दिल छिली नहीं छाती। | जब छिले दिल छिली नहीं छाती। | ||
आदमी हैं, आदमीयत है भली। | आदमी हैं, आदमीयत है भली। | ||
− | |||
बात यह कोई कहे इतरा नहीं। | बात यह कोई कहे इतरा नहीं। | ||
− | |||
छेद छाती में अछूतों के हुए। | छेद छाती में अछूतों के हुए। | ||
− | |||
जो अछूता जी गया छितरा नहीं। | जो अछूता जी गया छितरा नहीं। | ||
तब न छुटकारा दुखों से पा सके। | तब न छुटकारा दुखों से पा सके। | ||
− | |||
हम छोटाई छूत से छूटे न जब। | हम छोटाई छूत से छूटे न जब। | ||
− | |||
एक सा सब छूटना होता नहीं। | एक सा सब छूटना होता नहीं। | ||
− | |||
छूटने से पेट छूटा पेट कब। | छूटने से पेट छूटा पेट कब। | ||
वे अछूता हमें न छोड़ेंगे। | वे अछूता हमें न छोड़ेंगे। | ||
− | |||
छूत से हैं जिन्हें नहीं छूते। | छूत से हैं जिन्हें नहीं छूते। | ||
− | |||
हैं दबे पाँव के तले तो क्या। | हैं दबे पाँव के तले तो क्या। | ||
− | |||
क्या हमें काटते नहीं जूते। | क्या हमें काटते नहीं जूते। | ||
क्या उसी से कढ़ी न गंगा हैं। | क्या उसी से कढ़ी न गंगा हैं। | ||
− | |||
बल उसी के न क्या पुजे बावन। | बल उसी के न क्या पुजे बावन। | ||
− | + | हैं अपावन अछूत सब कैसे। | |
− | हैं अपावन अछूत सब | + | |
− | + | ||
है भला कौन पाँव सा पावन। | है भला कौन पाँव सा पावन। | ||
</poem> | </poem> |
16:00, 22 मार्च 2014 के समय का अवतरण
जो बहुत दुख पा चुके हैं आज तक।
कम न दुख होगा उन्हें अब दुख दिये।
सब तरह से जो बेचारे हैं दबे।
मत उन्हें आँखें दबा कर देखिये।
छूत क्या है, अछूत लोगों में।
क्यों न उन का अछूतपन लखिये।
हाथ रखिये अनाथ के सिर पर।
कान पर हाथ आप मत रखिये।
भूत सिर पर है बड़प्पन का चढ़ा।
छल रही है छूत जैसी बद बला।
कर बुरी बेकार बेजा ऐंठ क्यों।
जाति का हम ऐंठ देते हैं गला।
बाहरी जातपाँत के पचड़े।
भीतरी छूतछात की साधों।
हैं हमें बाँध बेतरह देतीं।
क्यों उन्हें जाति के गले बाँधों।
है कही जाती कहीं पर दानवी।
पुज रही है वह बनी देवी कहीं।
आज छूआछूत - चिन्ता से छिदे।
कौन सी छाती हुई छलनी नहीं।
तब सके छूट क्यों छिछोरापन।
सूझ जब छाँह छू नहीं पाती।
क्यों मिटे छूतछात के झगड़े।
जब छिले दिल छिली नहीं छाती।
आदमी हैं, आदमीयत है भली।
बात यह कोई कहे इतरा नहीं।
छेद छाती में अछूतों के हुए।
जो अछूता जी गया छितरा नहीं।
तब न छुटकारा दुखों से पा सके।
हम छोटाई छूत से छूटे न जब।
एक सा सब छूटना होता नहीं।
छूटने से पेट छूटा पेट कब।
वे अछूता हमें न छोड़ेंगे।
छूत से हैं जिन्हें नहीं छूते।
हैं दबे पाँव के तले तो क्या।
क्या हमें काटते नहीं जूते।
क्या उसी से कढ़ी न गंगा हैं।
बल उसी के न क्या पुजे बावन।
हैं अपावन अछूत सब कैसे।
है भला कौन पाँव सा पावन।