भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"केहि समुझावौ / कबीर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatBhajan}} | |
<poem> | <poem> | ||
केहि समुझावौ सब जग अन्धा॥ टेक॥ | केहि समुझावौ सब जग अन्धा॥ टेक॥ | ||
− | इक दु | + | इक दु होयँ उन्हैं समुझावौं |
सबहि भुलाने पेटके धन्धा। | सबहि भुलाने पेटके धन्धा। | ||
पानी घोड पवन असवरवा | पानी घोड पवन असवरवा | ||
ढरकि परै जस ओसक बुन्दा॥ १॥ | ढरकि परै जस ओसक बुन्दा॥ १॥ | ||
गहिरी नदी अगम बहै धरवा | गहिरी नदी अगम बहै धरवा | ||
− | खेवन- हार के पडिगा फन्दा। | + | खेवन-हार के पडिगा फन्दा। |
घर की वस्तु नजर नहि आवत | घर की वस्तु नजर नहि आवत | ||
दियना बारिके ढूँढत अन्धा॥ २॥ | दियना बारिके ढूँढत अन्धा॥ २॥ | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
बिन गुरुज्ञान भटकिगा बन्दा। | बिन गुरुज्ञान भटकिगा बन्दा। | ||
कहै कबीर सुनो भाई साधो | कहै कबीर सुनो भाई साधो | ||
− | जाय | + | जाय लंगोटी झारि के बन्दा॥ ३॥ |
</poem> | </poem> |
21:34, 20 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
केहि समुझावौ सब जग अन्धा॥ टेक॥
इक दु होयँ उन्हैं समुझावौं
सबहि भुलाने पेटके धन्धा।
पानी घोड पवन असवरवा
ढरकि परै जस ओसक बुन्दा॥ १॥
गहिरी नदी अगम बहै धरवा
खेवन-हार के पडिगा फन्दा।
घर की वस्तु नजर नहि आवत
दियना बारिके ढूँढत अन्धा॥ २॥
लागी आगि सबै बन जरिगा
बिन गुरुज्ञान भटकिगा बन्दा।
कहै कबीर सुनो भाई साधो
जाय लंगोटी झारि के बन्दा॥ ३॥