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"हाल-फ़िलहाल / शिरीष कुमार मौर्य" के अवतरणों में अंतर
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लालसाओं के मुख खुले ख़ून दिखा दांत दिखे | लालसाओं के मुख खुले ख़ून दिखा दांत दिखे | ||
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नाख़ून छुपे हुए आए पंजों से बाहर | नाख़ून छुपे हुए आए पंजों से बाहर | ||
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रामपुरी की तरह हाथ तमंचा हुआ | रामपुरी की तरह हाथ तमंचा हुआ | ||
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दिल रहा नहीं | दिल रहा नहीं | ||
एक मशीन ही बची धमनियों में ख़ून फेंकने के वास्ते | एक मशीन ही बची धमनियों में ख़ून फेंकने के वास्ते | ||
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शरीरों में बिलबिलाए कीड़े बाहर निकलते ही | शरीरों में बिलबिलाए कीड़े बाहर निकलते ही | ||
दूसरी देह को खा जाते | दूसरी देह को खा जाते | ||
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आसपास के सड़ते दिमाग़ों की बदबू सांसों में आने लगी | आसपास के सड़ते दिमाग़ों की बदबू सांसों में आने लगी | ||
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अकबका कर जागा मैं बेशर्म नींद से | अकबका कर जागा मैं बेशर्म नींद से | ||
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जागते रहने की कसम जो खाई थी बिला गई | जागते रहने की कसम जो खाई थी बिला गई | ||
बिना कुछ रचे नींद आ गई | बिना कुछ रचे नींद आ गई | ||
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अब एक दोपाया बचा है | अब एक दोपाया बचा है | ||
काम पर जा रहा है काम से आ रहा है | काम पर जा रहा है काम से आ रहा है | ||
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कवि की कमाई है | कवि की कमाई है | ||
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एक अध्यापक खा रहा है। | एक अध्यापक खा रहा है। | ||
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10:47, 21 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
लालसाओं के मुख खुले ख़ून दिखा दांत दिखे
नाख़ून छुपे हुए आए पंजों से बाहर
रामपुरी की तरह हाथ तमंचा हुआ
दिल रहा नहीं
एक मशीन ही बची धमनियों में ख़ून फेंकने के वास्ते
शरीरों में बिलबिलाए कीड़े बाहर निकलते ही
दूसरी देह को खा जाते
आसपास के सड़ते दिमाग़ों की बदबू सांसों में आने लगी
अकबका कर जागा मैं बेशर्म नींद से
जागते रहने की कसम जो खाई थी बिला गई
बिना कुछ रचे नींद आ गई
अब एक दोपाया बचा है
काम पर जा रहा है काम से आ रहा है
कवि की कमाई है
एक अध्यापक खा रहा है।