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"तस्वीर बदल चुकी है / विपिन चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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धूल से भरा एक मौसम
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नायक
बारिश के बीच से गुज़र,
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अपनी पीठ दिखा
साफ़-सुथरा होने के बाद
+
दूर जा चूका  हैं
फिर से धूल में लोट-पोट हो जाता है
+
नायिकाएं
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सिर  झुकाए सुबक रही हैं
  
एक  नायिका
 
एकतरफा प्रेम में डूब कर
 
नायक द्वारा फेंके हुए सिगरेट के  टुकडे उठा कर
 
अकेले में पीने लगती है
 
और फिर उसी सरूर में अपने सबसे अज़ीज़ सपनों को बारी-बारी से  कन्धा दे
 
दिया करती है
 
  
प्रेम की सीली यादों को
+
एक बड़ी खिड़की में
नाजुक ओस सी
+
इंतज़ार के खड़े सीखचों को थाम कर गुमसुम बैठी है नायिका
सावधानी से रूई पर उठा लेने के बाद
+
आंसुओं की गंगा- जमुना में बहा देना
+
प्रेम का सिलसिलेवार विधान है  
+
  
हमारी आत्मा
+
नायिका
उन्हीं  छुटी हुई चीज़ों से दोस्ती करने को आगे करती है
+
सोलह सिंगार में व्यस्त है
जो हमारे हाथ लगने से रह गयी है
+
नायक
और एक दिन
+
पडोसी देश की सेना को धूल चटा  कर अभी-अभी लौटा है
आत्घाती बन
+
हमें ही चोट पहुंचाने लगती है
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जब यह बात कोई यह बात जान लेता है  
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इतिहास की झांकी से हमारे नायक -नायिकाओं का अक्स कुछ ऐसा ही दिखता है
तब तक वह अपनी सारी जमा पूँजी
+
 
अपनी आत्मा के हवाले कर चुका होता है
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एक लम्बे अरसे के बाद ही नायिकाएं
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जान सकी
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कि आंसू,
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जलता हुआ गर्म पारा है
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इंतज़ार,
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एक मीठा धोखा
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याद,
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एक आत्मघाती  जहर
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सिंगार,
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खुद को भूलने का सलीकेदार शऊर
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यह जान
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सुनहरे फ्रेम में जड़ी हुई सभी नायिकाएं  बाहर जा चुकी हैं
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तस्वीर में रौंदी हुयी घास
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साफ़ दिखाई दे रही  है
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नायक,
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तफ़रीह से वापिस आ गए हैं
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बेचैन हैं
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अपनी नायिकाओं  को  तयशुदा जगह पर
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न पाकर
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अब नायक अकेले और प्रतीक्षारत खड़े हैं
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आओ
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मेरे समय के चित्रकारो
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उन्हें  इसी अवस्था में चित्रित करो
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हमारे पास कुछ  ऐसी तस्वीरें भी तो हो
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जिसके दोनों पलड़े में एक सा भार दिखाई दे
 
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10:13, 22 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

नायक
अपनी पीठ दिखा
दूर जा चूका हैं
नायिकाएं
सिर झुकाए सुबक रही हैं


एक बड़ी खिड़की में
इंतज़ार के खड़े सीखचों को थाम कर गुमसुम बैठी है नायिका

नायिका
सोलह सिंगार में व्यस्त है
नायक
पडोसी देश की सेना को धूल चटा कर अभी-अभी लौटा है

इतिहास की झांकी से हमारे नायक -नायिकाओं का अक्स कुछ ऐसा ही दिखता है


एक लम्बे अरसे के बाद ही नायिकाएं
जान सकी
कि आंसू,
जलता हुआ गर्म पारा है
इंतज़ार,
एक मीठा धोखा
याद,
एक आत्मघाती जहर
सिंगार,
खुद को भूलने का सलीकेदार शऊर

यह जान
सुनहरे फ्रेम में जड़ी हुई सभी नायिकाएं बाहर जा चुकी हैं
तस्वीर में रौंदी हुयी घास
साफ़ दिखाई दे रही है

नायक,
तफ़रीह से वापिस आ गए हैं
बेचैन हैं
अपनी नायिकाओं को तयशुदा जगह पर
न पाकर

अब नायक अकेले और प्रतीक्षारत खड़े हैं
आओ
मेरे समय के चित्रकारो
उन्हें इसी अवस्था में चित्रित करो

हमारे पास कुछ ऐसी तस्वीरें भी तो हो
जिसके दोनों पलड़े में एक सा भार दिखाई दे