"रिश्ते / सावित्री नौटियाल काला" के अवतरणों में अंतर
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वह बहुत से रिश्तों से जुड़ता है | वह बहुत से रिश्तों से जुड़ता है | ||
रिश्ते बनाता है उन्हें निभाता है | रिश्ते बनाता है उन्हें निभाता है | ||
− | बड़ी सलीके से जीवन में रिश्ते बढ़ाता | + | बड़ी सलीके से जीवन में रिश्ते बढ़ाता है। |
कुछ पूछते है रिश्ते कैसे बनाएँ | कुछ पूछते है रिश्ते कैसे बनाएँ | ||
उन्हें जीवन में किस सीमा तक निभायें | उन्हें जीवन में किस सीमा तक निभायें | ||
आज तो मानव स्वछंद रहना चाहता है | आज तो मानव स्वछंद रहना चाहता है | ||
− | किसी प्रकार के बंधन में नहीं बंधना चाहता | + | किसी प्रकार के बंधन में नहीं बंधना चाहता है। |
फिर भी जीवन में रिश्ते बनते ही है | फिर भी जीवन में रिश्ते बनते ही है | ||
निभाना चाहो तो निभते ही है | निभाना चाहो तो निभते ही है | ||
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जो उन्हें अपनी शख्सियत से निभाते है | जो उन्हें अपनी शख्सियत से निभाते है | ||
वे रिश्तों को निभाने में कुर्बान हो जाते है | वे रिश्तों को निभाने में कुर्बान हो जाते है | ||
− | कुछ तो रिश्तों में जान की जान भी ले लेते है | + | कुछ तो रिश्तों में जान की जान भी ले लेते है |
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21:51, 9 मई 2014 के समय का अवतरण
रिश्तों की जीवन में अहमियत होती है
जरुरत होती है नियामत होती है
मल्कियत होती है शराफत होती है
नजाकत होती है अदावत होती है
जो रिश्ते शराफत से निभाये जाते है
मन मंदिर में बसाये जाते है
घरों में सजाये जाते है
ईमानदारी व दुनियादारी से निभाये जाते है
वही रिश्ते जीवन में महान होते है
उन्हीं का सब सम्मान करते है
उन्हीं की कथा सब बयान करते है
उन्हीं की कीर्ति का सब बखान करते है
जब जीव संसार में आता है
वह बहुत से रिश्तों से जुड़ता है
रिश्ते बनाता है उन्हें निभाता है
बड़ी सलीके से जीवन में रिश्ते बढ़ाता है।
कुछ पूछते है रिश्ते कैसे बनाएँ
उन्हें जीवन में किस सीमा तक निभायें
आज तो मानव स्वछंद रहना चाहता है
किसी प्रकार के बंधन में नहीं बंधना चाहता है।
फिर भी जीवन में रिश्ते बनते ही है
निभाना चाहो तो निभते ही है
छुटकारा पाना चाहो तो टूटते भी है
पर रिश्ते तो रिश्ते ही होते है
रिश्तों की अहमियत वे ही जानते है
जो उन्हें अपनी शख्सियत से निभाते है
वे रिश्तों को निभाने में कुर्बान हो जाते है
कुछ तो रिश्तों में जान की जान भी ले लेते है