भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ईसुरी की फाग-8 / बुन्देली" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 14: पंक्ति 14:
  
 
ई धंधे के बीच 'ईसुरी' करत-करत मर जानें ।
 
ई धंधे के बीच 'ईसुरी' करत-करत मर जानें ।
 +
 +
 +
 +
''' भावार्थ'''<br><br>
 +
 +
 +
पास बैठ जाओ कुछ कहना है, काम तो जिंदगी भर रहेगा
 +
सभी को ये काम लगा रहता है जब तक वोह जिन्दा रहता है, ये काम कभी ख़त्म नहीं होगा
 +
काम थोड़ी देर रुक कर, कर लेना, कुछ बिगड़ नहीं जायेगा
 +
ईसुरी कहते है कि इस काम को कर कर के मर जायेंगे ।

08:51, 15 अप्रैल 2013 के समय का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

ऎंगर बैठ लेओ कछु काने, काम जनम भर रानें

सबखाँ लागौ रात जियत भर, जौ नइँ कभऊँ बड़ानें

करियो काम घरी भर रै कैं,बिगर कछु नइँ जानें

ई धंधे के बीच 'ईसुरी' करत-करत मर जानें ।


भावार्थ


पास बैठ जाओ कुछ कहना है, काम तो जिंदगी भर रहेगा सभी को ये काम लगा रहता है जब तक वोह जिन्दा रहता है, ये काम कभी ख़त्म नहीं होगा काम थोड़ी देर रुक कर, कर लेना, कुछ बिगड़ नहीं जायेगा ईसुरी कहते है कि इस काम को कर कर के मर जायेंगे ।