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"दिनकर / सुलोचना वर्मा" के अवतरणों में अंतर

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जानती हूँ भस्म कर देगी
 
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वो प्रथम दृष्टि भास्कर की
 
वो प्रथम दृष्टि भास्कर की
जब होगा प्रभात का आगमन स्न्गिध सोंदर्य के साथ
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जब होगा प्रभात का आगमन स्न्गिध सौंदर्य के साथ
 
और शंखनाद तब होगा
 
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घंटियाँ बज उठेंगी
 
घंटियाँ बज उठेंगी

00:13, 13 जून 2014 के समय का अवतरण

मेरी निशि की दीपशिखा
कुछ इस प्रकार प्रतीक्षारत है
दिनकर के एक दृष्टि की
ज्यूँ बाँस पर टँगे हुए दीपक
तकते हैं आकाश को
पंचगंगा की घाट पर

जानती हूँ भस्म कर देगी
वो प्रथम दृष्टि भास्कर की
जब होगा प्रभात का आगमन स्न्गिध सौंदर्य के साथ
और शंखनाद तब होगा
घंटियाँ बज उठेंगी
मन मंदिर के कपाट पर

मद्धिम सी स्वर-लहरियां करेंगी आहलादित प्राण
कर विसर्जित निज उर को प्रेम-धारा में
पंचतत्व में विलीन हो जाएगी बाती
और मेरा अस्ताचलगामी सूरज
क्रमशः अस्त होगा
यामिनी के ललाट पर