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"ख़ानाबदोश / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर
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+ | * [[संगदिल है वो तो क्यूं इसका गिला मैंने किया / फ़राज़]] | ||
+ | * [[अब वो मंजर, ना वो चेहरे ही नजर आते हैं / फ़राज़]] | ||
+ | * [[अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी / फ़राज़]] |
21:59, 9 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
खानाबदोश
रचनाकार | अहमद फ़राज़ |
---|---|
प्रकाशक | राजपाल एंड सन्ज |
वर्ष | |
भाषा | हिन्दी |
विषय | |
विधा | |
पृष्ठ | 335 |
ISBN | |
विविध |
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- हर्फ़े-ताज़ा की तरह क़िस्स-ए-पारीना / फ़राज़
- न कोई ख़्वाब न ताबीर ऐ मेरे मालिक / फ़राज़
- तेरा क़ुर्ब था कि फ़िराक़ था / फ़राज़
- यूँ तुझे ढूँढ़ने निकले के न आए ख़ुद भी / फ़राज़
- आज फिर दिल ने कहा आओ भुला दें यादें / फ़राज़
- मैं दीवाना सही पर बात सुन ऐ हमनशीं मेरी / फ़राज़
- ना दिल से आह ना लब सदा निकलती है / फ़राज़
- तेरी बातें ही सुनाने आये / फ़राज़
- ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे / फ़राज़
- दुख फ़साना नहीं के तुझसे कहें / फ़राज़
- तुझसे बिछड़ के हम भी मुकद्दर के हो गये / फ़राज़
- गनीम से भी अदावत में हद नहीं माँगी / फ़राज़
- ज़ख्म को फ़ूल तो सर-सर को सबा कहते हैं / फ़राज़
- तुझे उदास किया खुद भी सोगवार हुए / फ़राज़
- बुझा है दिल तो ग़मे-यार अब कहाँ तू भी / फ़राज़
- अच्छा था अगर ज़ख्म न भरते कोई दिन और / फ़राज़
- जो चल सको तो कोई ऐसी चाल चल जाना / फ़राज़
- हम सुनायें तो कहानी और है / फ़राज़
- संगदिल है वो तो क्यूं इसका गिला मैंने किया / फ़राज़
- अब वो मंजर, ना वो चेहरे ही नजर आते हैं / फ़राज़
- अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी / फ़राज़