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11:38, 2 जून 2013 के समय का अवतरण
सुबह का झरना, हमेशा हंसने वाली औरतें
झूटपुटे की नदियां, ख़मोश गहरी औरतें
सड़कों बाज़ारों मकानों दफ्तरों में रात दिन
लाल पीली सब्ज़ नीली, जलती बुझती औरतें
शहर में एक बाग़ है और बाग़ में तालाब है
तैरती हैं उसमें सातों रंग वाली औरतें
सैकड़ों ऎसी दुकानें हैं जहाँ मिल जायेंगी
धात की, पत्थर की, शीशे की, रबर की औरतें
इनके अन्दर पक रहा है वक़्त का आतिश-फिशान
किं पहाड़ों को ढके हैं बर्फ़ जैसी औरतें