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"भुखमरी का कोढ़ / महेश उपाध्याय" के अवतरणों में अंतर

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जून की रोटी हुई छोटी
 
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काम आधे पेट से अब
 
काम आधे पेट से अब
              हो नहीं पाते
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दो खिलौने माँस के भी
 
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नींद पूरी सो नहीं पाते
 
नींद पूरी सो नहीं पाते

13:18, 1 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण

जून की रोटी हुई छोटी
काम आधे पेट से अब
             हो नहीं पाते
दो खिलौने माँस के भी
नींद पूरी सो नहीं पाते

वस्तुएँ सब दे गईं धोळा
एक चुप्पी पी गई खड़खड़
देह में इतनी नहीं ताक़त
चेतना तक हो गई है जड़

चाहता हूँ नाप दूँ धरती
चार डग भी पाँव आगे चल नहीं पाते

हो गई सुरसा रसोई भी
भुखमरी का कोढ़ फैला है
हर तरफ़ अन्धी अराजकता
दूर तक मौसम कसैला है

सोचता हूँ यह करूँ या वह करूँ दिनभर
हाथ कुछ भी कर नहीं पाते