"चबूतरा : दो कविताएँ / कुमार मुकुल" के अवतरणों में अंतर
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गांव के कुएं के चौडे चबूतरे पर सोना | गांव के कुएं के चौडे चबूतरे पर सोना | ||
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डराता था मुझे | डराता था मुझे | ||
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फिर भी मैं सोता था वहां | फिर भी मैं सोता था वहां | ||
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क्योंकि चबूतरे पर | क्योंकि चबूतरे पर | ||
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सपने बडे सुंदर आते थे | सपने बडे सुंदर आते थे | ||
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मैं डरता था कि कभी - कभी | मैं डरता था कि कभी - कभी | ||
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बिल्ली चली आया करती थी | बिल्ली चली आया करती थी | ||
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चबूतरे पर | चबूतरे पर | ||
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मैं डरता कि कहीं बिल्ली के डर से | मैं डरता कि कहीं बिल्ली के डर से | ||
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कुएं में ना गिर जाउं | कुएं में ना गिर जाउं | ||
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इसी डर से कुत्ते को | इसी डर से कुत्ते को | ||
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अपने पास सुलाता था मैं | अपने पास सुलाता था मैं | ||
− | + | कभी कभी मैं झांकता कुएं में | |
− | कभी कभी मैं | + | |
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तो आकाश उतराता नजर आता | तो आकाश उतराता नजर आता | ||
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मुझे यह अच्छा लगता पर तभी | मुझे यह अच्छा लगता पर तभी | ||
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एक काली छाया नजर आती मुझे | एक काली छाया नजर आती मुझे | ||
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हिलती हुई | हिलती हुई | ||
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वह मेरी ही छाया होती थी | वह मेरी ही छाया होती थी | ||
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जो डराती थी मुझे | जो डराती थी मुझे | ||
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चबूतरे के पास ही | चबूतरे के पास ही | ||
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मेहंदी लगी थी | मेहंदी लगी थी | ||
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जो आज तक हरी है | जो आज तक हरी है | ||
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दिन में जिस पर लंगोट सूखते हैं | दिन में जिस पर लंगोट सूखते हैं | ||
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और रात में उगते हैं सफेद सपने । | और रात में उगते हैं सफेद सपने । | ||
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एक कुआं है | एक कुआं है | ||
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महानगर में भी | महानगर में भी | ||
− | + | बिना चबूतरे के | |
− | बिना चबूतरे के | + | |
− | + | ||
उसके निकट जाने पर ही | उसके निकट जाने पर ही | ||
− | |||
पता चलता कि कुआं है | पता चलता कि कुआं है | ||
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अडोस पडोस के लोग सोचते हैं | अडोस पडोस के लोग सोचते हैं | ||
− | |||
कि इसे भरवा देना चाहिए | कि इसे भरवा देना चाहिए | ||
− | |||
साल में एक बार छठ में | साल में एक बार छठ में | ||
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महातम जगता है इसका | महातम जगता है इसका | ||
− | |||
कुछ लोग जिन्हें | कुछ लोग जिन्हें | ||
− | + | इस लोकतंत्र में राय देने लायक | |
− | इस लोकतंत्र में राय देने लायक | + | |
− | + | ||
नहीं समझा जाता | नहीं समझा जाता | ||
− | + | वे कुएं के बारे में ऐसा नहीं सोचते | |
− | वे कुएं के बारे में | + | वह चाय की गुमटी वाला |
− | + | ||
− | वह चाय की गुमटी वाला | + | |
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ऐसा नहीं सोचता | ऐसा नहीं सोचता | ||
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जिसकी चाय के लिए पानी | जिसकी चाय के लिए पानी | ||
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इसी कुएं से जाता है | इसी कुएं से जाता है | ||
− | + | सुबह सुबह कुछ दूघिए | |
− | सुबह सुबह कुछ दूघिए | + | |
− | + | ||
अपने गेरू वहीं धोते हैं | अपने गेरू वहीं धोते हैं | ||
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एक भिखमंगा | एक भिखमंगा | ||
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भरी दोपहरी में | भरी दोपहरी में | ||
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नहाता है वहीं | नहाता है वहीं | ||
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पर पडोस में ही एक स्कूल है | पर पडोस में ही एक स्कूल है | ||
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ओर महानगर के सुनागरिक | ओर महानगर के सुनागरिक | ||
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ठीक ही सोचते हैं | ठीक ही सोचते हैं | ||
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कि उनके बच्चे इसमें गिर ना जाएं | कि उनके बच्चे इसमें गिर ना जाएं | ||
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भिखमंगे की एक ही संतान है | भिखमंगे की एक ही संतान है | ||
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पर भिखमंगा अक्सर यह कहता हुआ | पर भिखमंगा अक्सर यह कहता हुआ | ||
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गुजरता है | गुजरता है | ||
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कि इस मुए को एक दिन | कि इस मुए को एक दिन | ||
− | + | इसी कुएं में | |
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डाल देना है । | डाल देना है । | ||
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1995 | 1995 | ||
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00:34, 30 सितम्बर 2014 के समय का अवतरण
1
बचपन में
गांव के कुएं के चौडे चबूतरे पर सोना
डराता था मुझे
फिर भी मैं सोता था वहां
क्योंकि चबूतरे पर
सपने बडे सुंदर आते थे
मैं डरता था कि कभी - कभी
बिल्ली चली आया करती थी
चबूतरे पर
मैं डरता कि कहीं बिल्ली के डर से
कुएं में ना गिर जाउं
इसी डर से कुत्ते को
अपने पास सुलाता था मैं
कभी कभी मैं झांकता कुएं में
तो आकाश उतराता नजर आता
मुझे यह अच्छा लगता पर तभी
एक काली छाया नजर आती मुझे
हिलती हुई
वह मेरी ही छाया होती थी
जो डराती थी मुझे
चबूतरे के पास ही
मेहंदी लगी थी
जो आज तक हरी है
दिन में जिस पर लंगोट सूखते हैं
और रात में उगते हैं सफेद सपने ।
2
एक कुआं है
महानगर में भी
बिना चबूतरे के
उसके निकट जाने पर ही
पता चलता कि कुआं है
अडोस पडोस के लोग सोचते हैं
कि इसे भरवा देना चाहिए
साल में एक बार छठ में
महातम जगता है इसका
कुछ लोग जिन्हें
इस लोकतंत्र में राय देने लायक
नहीं समझा जाता
वे कुएं के बारे में ऐसा नहीं सोचते
वह चाय की गुमटी वाला
ऐसा नहीं सोचता
जिसकी चाय के लिए पानी
इसी कुएं से जाता है
सुबह सुबह कुछ दूघिए
अपने गेरू वहीं धोते हैं
एक भिखमंगा
भरी दोपहरी में
नहाता है वहीं
पर पडोस में ही एक स्कूल है
ओर महानगर के सुनागरिक
ठीक ही सोचते हैं
कि उनके बच्चे इसमें गिर ना जाएं
भिखमंगे की एक ही संतान है
पर भिखमंगा अक्सर यह कहता हुआ
गुजरता है
कि इस मुए को एक दिन
इसी कुएं में
डाल देना है ।
1995